Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 565 of 4199

 

समयसार गाथा-४६ ] [ ४७ प्रवृत्ति करवा माटे व्यवहारनय दर्शाववो न्याय संगत ज छे. एटले एम न समजवुं के व्यवहारथी धर्मतीर्थनी प्रवृत्ति थाय छे. व्यवहारथी मोक्षमार्ग प्रगटे छे एम कहेवानो अहीं आशय नथी. मोक्षमार्ग जे छे ए तो स्वद्रव्यना आश्रये ज प्रगट थाय छे. परंतु पर्यायमां गुणस्थान आदि जे भेद छे ते न माने तो तीर्थनो नाश थई जाय, तीर्थनी व्यवस्था ज बनी शके नहि एम अहीं कहेवुं छे. व्यवहार छे खरो; व्यवहार न होय तो चौद गुणस्थान सिद्ध नहि थाय, संसार अने सिद्धनी पर्याय एवा जे भेद छे ते सिद्ध नहि थाय.

व्यवहारनय अपरमार्थभूत छे. एटले चौद गुणस्थानो वास्तविकपणे तो अपरमार्थ छे, जीवनुं मूळ स्वरूप नथी; पण तीर्थनी प्रवृत्ति माटे अर्थात् चोथुं, पांचमुं, छठ्ठुं, इत्यादि गुणस्थाननी दशा जणाववा माटे व्यवहार दर्शाव्यो छे. निश्चयथी पर्याय द्रव्यमां नथी पण पर्याय पर्यायरूपे छे एटलो व्यवहार अहीं सिद्ध करवो छे. पर्यायना आश्रये धर्म थाय छे, व्यवहारना आश्रये तीर्थ प्रगट थाय छे ए वात नथी. लोकोने आमां मोटो गोटो छे के व्यवहारथी धर्मतीर्थनी प्रवृत्ति थाय छे. पण भाई, एम नथी. धर्म-तीर्थनी प्रवृत्ति तो शुद्ध निश्चय चैतन्यमात्र द्रव्यना आश्रये ज थाय छे. अहीं तो सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्ररूप पर्याय, १४ गुणस्थान आदि भावो पर्यायपणे छे एम पर्यायरूप व्यवहारनी सिद्धि करी छे.

श्री समयसारनी १२मी गाथानी टीकामां (जइ जिणमयं पवज्जह...) गाथा उद्धृत करेली छे एमां आवे छे के जो तमे जिनमतने प्रवर्ताववा चाहता हो तो व्यवहार अने निश्चय-ए बंने नयोने न छोडो. तेनो अर्थ शुं? के निश्चयने न मानो तो तत्त्वनो नाश थशे अने व्यवहारने नहि मानो तो पर्याय, जीवना त्रस-स्थावरादि भेदो, संसारी अने सिद्धना भेदो अने गुणस्थानादि भेदो इत्यादि कांई सिद्ध नहि थाय. निश्चयथी जीव अभेद एकरूप त्रिकाळ छे. एमां पर्यायना भेद करवा ए व्यवहार छे. निश्चयद्रष्टिमां व्यवहार अभूतार्थ होवा छतां आवो भेदरूप व्यवहार छे खरो, परंतु ते आश्रय करवा लायक नथी. व्यवहारनुं अस्तित्व छे, बस एटलुं ज.

रागने मोक्षमार्ग कहेवानो व्यवहार छे खरो, पण तेथी राग खरेखर मोक्षमार्ग छे एम नथी. पर्यायना भेदो, गुणस्थान आदि भेदो छे खरा पण ते शुद्ध जीवद्रव्यमां नथी, त्रिकाळी द्रव्यमां नथी. माटे त्रिकाळी शुद्ध द्रव्यनो आश्रय करे छे त्यां पर्यायनो आश्रय रहेतो नथी. छतां पर्याय छे खरी.

हवे कहे छे-परंतु जो व्यवहार न दर्शाववामां आवे तो, परमार्थे शरीरथी जीव भिन्न दर्शाववामां आवतो होवाथी, जेम भस्मने मसळी नाखवामां हिंसानो अभाव छे