समयसार गाथा-४६ ] [ ४९
सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र, गुणस्थानना भेदो ए बधुं व्यवहार छे. निश्चयथी तो आत्मा गुणस्थान आदि रहित छे. निश्चयनयथी राग आत्मानो नथी एवुं सर्वज्ञनुं वचन छे. तथा व्यवहारथी राग आत्मानो छे ए पण सर्वज्ञनुं वचन छे. त्यां पर्यायमां जे राग छे, आस्त्रव- बंध छे तेनुं ज्ञान कराव्युं छे. तथा निज चैतन्यस्वभावी शुद्ध द्रव्यना आश्रये ते आस्त्रव- बंधनो नाश थई जे संवर, निर्जरा आदि पर्यायो प्रगट थाय छे एनुं ज्ञान कराव्युं छे. सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्ररूप जे निश्चय मोक्षमार्ग छे ते सद्भूत-व्यवहार छे तथा रागादि छे ए असद्भूत व्यवहार छे. पण बन्ने छे तो खरा ने?
भाई! संसार, मोक्षमार्ग अने मोक्ष ए बधुंय पर्याय छे. धर्मतीर्थनी प्रवृत्ति पण पर्यायरूप छे. पर्याय छे माटे व्यवहार छे. व्यवहार अपरमार्थभूत कह्यो छे केमके तेना आश्रये निर्मळता प्रगटती नथी. छतां ते दर्शाववो न्यायसंगत ज छे केमके ते अस्तिपणे तो छे ज. त्रिकाळी शुद्ध तत्त्व छे ते भूतार्थ छे, सत्यार्थ छे अने पर्याय छे ते अभूतार्थ छे, असत्यार्थ छे. पण कई अपेक्षाए? पर्याय आश्रय करवा योग्य नथी माटे तेने असत्यार्थ छे. पण कई अपेक्षाए? पर्याय आश्रय करवा योग्य नथी माटे तेने असत्यार्थ कही छे. पर्याय छे ज नहि एम नथी. बारमी गाथामां एम लीधुं छे के शुद्धतानो अंश, अशुद्धतानो अंश तथा शुद्धता- अशुद्धताना वधता-घटता अंशो ए सघळो व्यवहार जे छे ते जाणेलो प्रयोजनवान छे. जाणेलो प्रयोजनवान कह्यो तेमां ते छे एम सिद्ध थई जाय छे. जो व्यवहार होय ज नहि तो तेने जाणवानुं कयां रह्युं? भाई, वस्तु जेम छे तेम समजवी पडशे. एना विना भवनो अंत नहि आवे.
जे करवाथी भवनो अभाव न थाय ए शुं कामनुं? भवनो अभाव तो एक द्रव्यना (शुद्ध द्रव्यना) आश्रये थाय छे. तथा ए भवनो अभाव थवो मोक्ष थवो के मोक्षमार्ग प्रगटवो ए बधो व्यवहार छे. ११मी गाथामां कह्युं ने के-‘व्यवहारोऽभूदत्थो’ व्यवहार बधोय अभूतार्थ छे पर्यायमात्र अभूतार्थ छे. तेमां एम लीधुं छे के व्यवहारनय बधोय अभूतार्थ होवाथी अभूत अर्थने प्रगट करे छे. ए व्यवहारना चार प्रकार छेः-
(१) अनुपचरित सद्भूतव्यवहार, (२) उपचरित सद्भूतव्यवहार, (३) अनुपचरित असद्भूतव्यवहार, (४) उपचरित असद्भूतव्यवहार.
ए बधो व्यवहार छे खरो, पण ते जाणेलो प्रयोजनवान छे, आदरेलो प्रयोजनवान नथी. ए चार व्यवहारनयनी व्याख्या आ प्रमाणे छेः