समयसार गाथा-४६ ] [ प१ एनी अस्ति सिद्ध थई गई, अर्थात् एनी एटली अपेक्षा आवी गई. भाई, आ तत्त्व समजवा माटे मध्यस्थ थवुं जोईए. मध्यस्थ थाय एने समजाय एवुं छे.
निश्चय जे शुद्ध द्रव्यवस्तु तेनो निर्णय करनार कोण छे? तेनो निर्णय करनारी पर्याय व्यवहार छे. नित्यनो निर्णय करनार पण अनित्य पर्याय ज छे. भाई, बधुं स्याद्वादनी अपेक्षाथी ज समजाय एम छे, एकांतथी कांई पकडाय नहि. परंतु स्याद्वादनो अर्थ एम नथी के निश्चयथी पण मोक्षमार्ग थाय अने व्यवहारथी पण मोक्षमार्ग थाय. व्यवहार छे, बस एटलुं अहीं कहेवुं छे.
आ शास्त्रनी आठमी गाथामां आवे छे के म्लेच्छोने ‘स्वस्ति’ एटले तारुं ‘अविनाशी कल्याण थाओ’ एवो अर्थ म्लेच्छभाषा द्वारा ज समजावी शकाय छे. तेवी रीते व्यवहारीओने वस्तुस्वरूप व्यवहारनय द्वारा समजाववामां आवे छे. परंतु जेम ब्राह्मणे म्लेच्छ थवुं योग्य नथी तेम समजनारे के समजावनारे व्यवहारने अनुसरवो योग्य नथी. त्यां एम कह्युं छे के व्यवहारनय म्लेच्छभाषाना स्थाने होवाना लीधे परमार्थनो प्रतिपादक होवाथी स्थापन करवा योग्य छे पण तेथी ते अनुसरवा योग्य नथी. आ तो परम सत्यनी सिद्धि थाय छे, भाई!
श्री पुरुषार्थ सिद्धयुपायमां आवे छे के-ज्यारे एक नयनी विवक्षा होय त्यारे बीजा नयने ढीलो करवो, गौण करवो; वलोणामां रवई खेंचनार गोवालणनी जेम-जेम नेतरांनो एक छेडो खेंचवामां आवे त्यारे बीजो छेडो ढीलो मूकवामां आवे छे तेम. पण ए तो बन्ने नयोना विषयोनुं ज्ञान करवुं होय एनी वात छे. व्यवहारनुं ज्ञान करवुं होय त्यारे निश्चयने गौण करे अने निश्चयनुं ज्ञान करवुं होय त्यारे व्यवहारने गौण राखे. परंतु आश्रय करवा अने श्रद्धा करवा माटे तो एक ज-एक निश्चय ज मुख्य छे. एक त्रिकाळ भूतार्थना आश्रये ज सम्यग्दर्शन थाय. त्यां तो एक निश्चयना जोरमां (आश्रयमां) व्यवहारने ढीलो करीने (एनुं लक्ष छोडी दईने) पर्यायने निश्चयमां जोडी देवानी छे. (सहज जोडाय जाय छे.) एक भूतार्थना आश्रये ज सम्यग्दर्शन थाय ए एक ज सिद्धांत छे; व्यवहारना आश्रये पण समक्ति थाय एम स्याद्वाद नथी. श्रद्धान करवामां के आश्रय करवामां व्यवहारने ताणवो (मुख्य करवो) अने निश्चयने ढीलो (गौण) करवो ए वात छे ज नहि, एवो स्याद्वाद छे ज नहि.
स्याद्वादनो अर्थ एवो नथी के निश्चयथी पण धर्म थाय अने व्यवहारथी पण धर्म थाय. जेम म्लेच्छभाषा म्लेच्छोने वस्तुस्वरूप जणावे छे तेम व्यवहारनय व्यवहारीओने परमार्थनो कहेनार छे. परंतु व्यवहारनय परमार्थनो प्रगट करनार छे एम नथी. भेद छे ते अभेदने बतावे छे पण अभेदनो अनुभव करावतो नथी. माटे भेद आदरणीय नथी, व्यवहार आदरणीय नथी.