Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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प२ ] [ प्रवचन रत्नाकर भाग-३

कह्युं छे ने के व्यवहारनय दर्शाववो न्यायसंगत ज छे, केमके ते विकारी-अविकारी पर्यायोना भेदने बतावे छे. पण तेथी व्यवहारनय आदरवो न्यायसंगत छे एम नथी. भाई, आ तो दिगंबर संतोनी वाणी छे. आवी वाणी बीजे कयांय छे ज नहि. दिगंबर ए कोई पक्ष के वाडो नथी. वस्तुनुं जेवुं स्वरूप छे एवुं यथार्थ स्वरूप दिगंबर संतोए प्रसिद्ध कर्युं छे. रागना वस्त्र विनानी जे चीज (ज्ञायकमात्र वस्तु) ते दिगंबर आत्मा छे. अने वस्त्र विनानी शरीरनी दशा ए बाह्य दिगंबरपणुं छे. अहो! दिगंबरत्व कोई अद्भुत अलौकिक चीज छे. पक्ष बंधाई गयो तेथी आकरुं लागे पण शुं थाय? वस्तुस्थिति ज आवी छे.

हवे आगळ कहे छे-वळी परमार्थ द्वारा राग-द्वेष-मोहथी जीव भिन्न दर्शाववामां आवतो होवाथी (व्यवहारनय न दर्शाववामां आवे तो) ‘रागी, द्वेषी, मोही जीव कर्मथी बंधाय छे तेने छोडाववो’-एम मोक्षना उपायना ग्रहणनो अभाव थशे अने तेथी मोक्षनो ज अभाव थशे.

मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद, कषाय अने योग ए पांच बंधनां कारण छे. बंधनां कारण वस्तुना स्वभावमां नथी. पण ए बंधनां कारण पर्यायमां तो छे ज. जो व्यवहारनय न दर्शाववामां आवे तो बंधनां कारणो सिद्ध थशे नहि अने तेथी रागी, द्वेषी, मोही जीव कर्मथी बंधाय छे एम पण कही नहि शकाय. अने एम थतां मोक्षना उपायना ग्रहणनो अभाव थशे. अने तेथी मोक्षनो पण अभाव थशे.

समयसार गाथा ३४मां तो त्यां सुधी आवे छे के विकारना त्यागनुं र्क्तापणुं आत्माने नाममात्र छे. परंतु पर्यायमां विकार छे अने तेनो नाश थाय छे एवो व्यवहार छे तो खरो ने? परमार्थे विकारना नाशनुं र्क्तापणुं आत्माने नथी. एटले त्रिकाळी ज्ञायकस्वभावनो ज्यां आश्रय कर्यो के विकार छूटी जाय छे. अर्थात् त्यारे विकार उत्पन्न थतो नथी तेथी पूर्व पर्यायनी अपेक्षाए विकारनो नाश कर्यो एम कहेवामां आवे छे. एटले पर्यायमां विकार छे अने तेनो नाश थाय छे एवो व्यवहार छे.

श्री परमात्मप्रकाशमां (गाथा ८८मां) आवे छे के भावलिंग जे शुद्धात्मस्वरूपनो साधक निर्विकल्प मोक्षमार्ग छे ते पण जीवनुं स्वरूप नथी. भावलिंग पर्याय छे ने? तेथी कह्युं छे के उपचारनयथी जीवनुं स्वरूप कहेवा छतां परम सूक्ष्म शुद्धनिश्चयनयथी भावलिंग पण जीवने नथी. निश्चयथी तो बंध अने मोक्षनी पर्याय आत्मामां छे ज नहि. वस्तु तो त्रिकाळ एकरूप मुक्तस्वरूप ज छे. मोक्षनी उत्पत्ति अने संसारनो नाश ए बन्ने पर्यायमां छे अने तेथी व्यवहार छे.

जो व्यवहार न दर्शाववामां आवे तो बंध-मोक्षनो ज अभाव ठरे. नवी (मोक्षनी) पर्याय प्रगट करवी अने बंधनो नाश करवो ए बधुं पर्यायमां छे. माटे व्यवहार