Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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समयसार गाथा ४७-४८ ] [ पप एक राजानुं पांच योजनमां फेलावुं अशकय होवाथी, व्यवहारी लोकोनो सेनासमुदायमां राजा कहेवारूप व्यवहार छे; परमार्थथी तो राजा एक ज छे, (सेना राजा नथी); तेवी रीते आ जीव समग्र रागग्राममां (-रागनां स्थानोमां) व्यापीने प्रवर्ती रह्यो छे एम कहेवुं ते, एक जीवनुं समग्र रागग्राममां व्यापवुं अशकय होवाथी, व्यवहारी लोकोनो अध्यवसानादिक अन्यभावोमां जीव कहेवारूप व्यवहार छे; परमार्थथी तो जीव एक ज छे, (अध्यवसानादिक भावो जीव नथी).

* श्री समयसार गाथा ४७–४८ः मथाळुं *

हवे शिष्य पूछे छे के आ व्यवहारनय कया द्रष्टांतथी प्रवर्त्यो छे? तेनो उत्तर कहे छे.

* गाथा ४७–४८ः टीका उपरनुं प्रवचन *

पांच योजनना फेलावथी लश्कर नीकळी रह्युं होय त्यां राजा पांच योजनना फेलावथी नीकळी रह्यो छे एम व्यवहारथी, उपचारथी कहेवाय छे. खरेखर राजानुं पांच योजनमां फेलावुं अशकय छे. छतां व्यवहारी लोकोनो सेनासमुदायमां राजा कहेवारूप व्यवहार छे. परमार्थथी तो राजा एक ज छे, सेना राजा नथी. छतां सेनाने राजा कहेवानो लोकव्यवहार छे.

तेवी रीते आ जीव समग्र रागग्राममां व्यापीने प्रवर्ती रह्यो छे एम कहेवुं ते एक जीवनुं समग्र रागग्राममां व्यापवुं अशकय होवाथी, व्यवहारी लोकोनो अध्यवसानादिक अन्यभावोमां जीव कहेवारूप व्यवहार छे; परमार्थथी तो जीव एक ज छे.

खरेखर सेनामां राजा व्याप्यो नथी; पण सेनामां राजा निमित्त छे. तेथी राजा पांच योजनमां व्यापीने रह्यो छे एम कहेवामां आवे छे. तेवी रीते शुद्ध आत्मवस्तु छे ते विकारना अनेक प्रकारमां कांई व्यापी नथी; पण विकारना अनेक प्रकार जे अशुद्ध उपादानभूत छे तेमां आत्मा निमित्त छे. अशुद्ध उपादान पर्यायनुं पोतानुं स्वतंत्र छे, पण द्रव्यने तेमां निमित्त कहेवामां आवे छे. श्री योगसारमां आ वात लीधी छे. विकारनुं मूळ उपादान आत्मा नथी. अशुद्ध उपादान, व्यवहार स्वतंत्र छे. आत्मवस्तु छे ते विकारमां उपादान नथी, निमित्त छे. तेथी व्यवहारथी आत्मा रागमां व्याप्यो छे एम कहेवामां आवे छे. भाई, आवुं वीतरागनुं तत्त्व समजवुं झीणुं छे.

परमार्थथी तो राजा एक ज छे, सेना राजा नथी केमके सेनामां राजानुं व्यापवुं अशकय छे. तेम निश्चयथी आत्मा अतीन्द्रिय ज्ञान अने आनंदनो पिंड प्रभु शुद्ध चैतन्यघनवस्तु एक ज छे. आ मिथ्यात्वना असंख्य प्रकार, शुभभावना असंख्य प्रकार तथा अुशभभावना असंख्य प्रकार-एम जे समग्र रागग्राम छे ते आत्मा नथी केमके ते