प६ ] [ प्रवचन रत्नाकर भाग-३ रागग्राममां आत्मानुं व्यापवुं अशकय छे. आनंदनो नाथ त्रिकाळी शुद्ध भगवान नित्य ध्रुव प्रभु असंख्य प्रकारनी अशुद्धतामां, विकारमां केम आवे? अशुद्धताने करे, विकारने करे एवो कोई आत्मामां गुण, स्वभाव के शक्ति नथी. पर्यायमां जे अशुद्धता थाय छे ते स्वतंत्र अशुद्ध उपादानथी थाय छे. अशुद्ध उपादान कहो के व्यवहार कहो. शुद्ध उपादानभूत वस्तु कांई अशुद्ध उपादाननुं कारण नथी, पण निमित्त छे. तेथी जेम सेनामां राजा रह्यो छे एम कहेवानो व्यवहारी लोकोनो व्यवहार छे तेम विकारमां जीव रह्यो छे एम कहेवानो व्यवहारीजननो व्यवहार छे. वस्तु खरेखर रागमां आवी ज नथी.
अज्ञानीओने समजाववा व्यवहारथी उपदेश करवामां आवे छे. पण व्यवहारने ज चोंटी पडे, वळगी पडे ए उपदेशने पात्र नथी. अरे भाई! आत्मा कोई अलौकिक वस्तु छे!! ए तो भगवत्स्वरूप परमात्मारूप समयसार छे. त्रिकाळ ध्रुव परमानंदस्वरूप चिद्घन वस्तु छे ते भूतार्थ छे, सत्य छे. अने ते ज आत्मा अने समयसार छे. श्री समयसार गाथा ११मां आवे छे के त्रिकाळी शुद्ध वस्तु छे ते भूतार्थ छे अने असंख्य प्रकारना विकारो, पर्यायभेदो छे ते त्रिकाळीनी अपेक्षाए असत्यार्थ छे. पर्यायनी अपेक्षाए पर्याय छे, पण द्रव्यनी अपेक्षाए ते असत्यार्थ छे. रागादिना असंख्य प्रकारमां आत्मा उपादानभूत नथी, निमित्त तरीके छे. नित्य एकरूप सत्यार्थ प्रभु आत्मा चिन्मात्रमूर्ति पवित्रतानो पिंड छे. तेने असंख्य प्रकारना रागमां व्यापेलो कहेवो ते व्यवहारनय छे.
वस्तु तो शुद्ध उपादानस्वरूप छे. तेमां अशुद्धतानी गंध नथी. माटे अशुद्धतानी दशामां फेलाईने रहे ते अशकय छे. छतां पर्यायमां जे रागादि असंख्य प्रकारे अशुद्धता छे तेमां अशुद्ध उपादान कारण छे. ते स्वतंत्र छे. द्रव्यनुं तो मात्र तेमां निमित्तपणुं छे एटले मात्र हाजरी, उपस्थिति छे. तेथी व्यवहारथी एटले अभूतार्थनयथी एम कहेवामां आवे छे के रागादिना असंख्य प्रकारोमां आत्मा व्याप्यो छे.
भाई! आ वात झीणी छे. पण प्रयत्न करे तो समजाय तेवी छे. त्रणलोकना नाथ सर्वज्ञ परमेश्वरनां आ वचनो छे ते संतोए प्रसिद्ध कर्यां छे. तेनुं वाच्य बहु ऊंडुं अने रहस्यमय छे. गंभीर कथन छे! शुं कहे छे? के पूर्णानंदनो नाथ नित्यानंद ध्रुव प्रभु विकारना, रागना विस्तारमां व्यापे ते अशकय छे. आ दया, दान, व्रत, भक्ति, पूजा इत्यादि शुभभावो, हिंसा, जूठ, चोरी, कुशील, परिग्रह, काम, क्रोधादि अशुभभावो तथा असंख्यात मिथ्यात्वना भावो-एम असंख्य प्रकारना जे विकारी भावो तेमां सत्यार्थ शुद्ध जीववस्तु व्यापती नथी केमके ते अनादि अनंत ध्रुव एकस्वरूप छे. सर्वज्ञ सिवाय आ वात बीजे कयांय मळे एम नथी. अहो! द्रव्यस्वभाव शुं अद्भुत परलौकिक चीज छे!!