६० ] [ प्रवचन रत्नाकर भाग-३ स्पर्शना ज्ञानरूपे परिणमतां छतां पण पोते स्पर्शरूपे परिणमतो नथी माटे अस्पर्श छे. ६. आम छ प्रकारे स्पर्शना निषेधथी ते अस्पर्श छे.
ए रीते, जीव खरेखर पुद्गलद्रव्यथी अन्य होवाथी तेमां शब्दपर्याय विद्यमान नथी माटे अशब्द छे. १. पुद्गलद्रव्यना पर्यायोथी पण भिन्न होवाथी पोते पण शब्दपर्याय नथी माटे अशब्द छे. २. परमार्थे पुद्गलद्रव्यनुं स्वामीपणुं पण तेने नहि होवाथी ते द्रव्येन्द्रियना आलंबन वडे पण शब्द सांभळतो नथी माटे अशब्द छे. ३. पोताना स्वभावनी द्रष्टिथी जोवामां आवे तो क्षायोपशमिक भावनो पण तेने अभाव होवाथी ते भावेन्द्रियना आलंबन वडे पण शब्द सांभळतो नथी माटे अशब्द छे. ४. सकल विषयोना विशेषोमां साधारण एवा एक ज संवेदनपरिणामरूप तेनो स्वभाव होवाथी ते केवळ एक शब्दवेदनापरिणामने पामीने शब्द सांभळतो नथी माटे अशब्द छे. प. (तेने समस्त ज्ञेयोनुं ज्ञान थाय छे परंतु) सकल ज्ञेयज्ञायकना तादात्म्यनो निषेध होवाथी शब्दना ज्ञानरूपे परिणमतां छतां पण पोते शब्दरूपे परिणमतो नथी माटे अशब्द छे. ६. आम छ प्रकारे शब्दना निषेधथी ते अशब्द छे.
(हवे ‘अनिर्दिष्टसंस्थान’ विशेषण समजावे छेः-) पुद्गलद्रव्य वडे रचायेलुं जे शरीर तेना संस्थान (आकार)थी जीवने संस्थानवाळो कही शकातो नथी माटे जीव अनिर्दिष्टसंस्थान छे. १. पोताना नियत स्वभावथी अनियत संस्थानवाळा अनंत शरीरोमां रहे छे माटे अनिर्दिष्टसंस्थान छे. २. संस्थान नामकर्मनो विपाक (फळ) पुद्गलोमां ज कहेवामां आवे छे (तेथी तेना निमित्तथी पण आकार नथी) माटे अनिर्दिष्टसंस्थान छे. ३. जुदां जुदां संस्थानरूपे परिणमेली समस्त वस्तुओनां स्वरूप साथे जेनी स्वाभाविक संवेदनशक्ति संबंधित (अर्थात् तद्राकार) छे एवो होवा छतां पण जेने समस्त लोकना मिलापथी (-संबंधथी) रहित निर्मळ (ज्ञानमात्र) अनुभूति थई रही छे एवो होवाथी पोते अत्यंतपणे संस्थान विनानो छे माटे अनिर्दिष्टसंस्थान छे. ४. आम चार हेतुथी संस्थाननो निषेध कह्यो.
(हवे ‘अव्यक्त’ विशेषणने सिद्ध करे छेः-) छ द्रव्यस्वरूप लोक जे ज्ञेय छे अने व्यक्त छे तेनाथी जीव अन्य छे माटे अव्यक्त छे. १. कषायोनो समूह जे भावकभाव व्यक्त छे तेनाथी जीव अन्य छे माटे अव्यक्त छे. २. चित्सामान्यमां चैतन्यनी सर्व व्यक्तिओ निमग्न (अंतर्भूत) छे माटे अव्यक्त छे. ३. क्षणिक व्यक्तिमात्र नथी माटे अव्यक्त छे. ४. व्यक्तपणुं तथा अव्यक्तपणुं भेळां मिश्रितरूपे तेने प्रतिभासवा छतां पण ते व्यक्तपणाने स्पर्शतो नथी माटे अव्यक्त छे. प. पोते पोताथी ज बाह्य-अभ्यंतर स्पष्ट अनुभवाई रह्यो होवा छतां पण व्यक्तपणा प्रति उदासीनपणे प्रद्योतमान (प्रकाशमान) छे माटे अव्यक्त छे. ६. आम छ हेतुथी अव्यक्तपणुं सिद्ध कर्युं.