Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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समयसार गाथा-४९ ] [ ६१

(मालिनी)
सकलमपि विहायाह्नाय चिच्छक्तिरिक्तं
स्फुटतरमवगाह्य स्वं च चिच्छक्तिमात्रम्।
इममुपरि चरन्तं चारु विश्वस्य साक्षात्
कलयतु परमात्मात्मानमात्मन्यनन्तम्।। ३५ ।।

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आ प्रमाणे रस, रूप, गंध, स्पर्श, शब्द, संस्थान अने व्यक्तपणानो अभाव होवा छतां पण स्वसंवेदनना बळथी पोते सदा प्रत्यक्ष होवाथी अनुमानगोचरमात्रपणाना अभावने लीधे (जीवने) अलिंगग्रहण कहेवामां आवे छे.

पोताना अनुभवमां आवता चेतनागुण वडे सदाय अंतरंगमां प्रकाशमान छे तेथी (जीव) चेतनागुणवाळो छे. केवो छे चेतनागुण? जे समस्त विप्रतिपत्तिओनो (जीवने अन्य प्रकारे मानवारूप झघडाओनो) नाश करनार छे, जेणे पोतानुं सर्वस्व भेदज्ञानी जीवोने सोंपी दीधुं छे. जे समस्त लोकालोकने ग्रासीभूत करी जाणे के अत्यंत तृप्ति वडे ठरी गयो होय तेम (अर्थात् अत्यंत स्वरूप-सौख्य वडे तृप्त तृप्त होवाने लीधे स्वरूपमांथी बहार नीकळवानो अनुद्यमी होय तेम) सर्व काळे किंचित्मात्र पण चलायमान थतो नथी अने ए रीते सदाय जरा पण नहि चळतुं अन्यद्रव्यथी असाधारणपणुं होवाथी जे (असाधारण) स्वभावभूत छे.

-आवो चैतन्यरूप परमार्थस्वरूप जीव छे. जेनो प्रकाश निर्मळ छे एवो आ भगवान आ लोकमां एक, टंकोत्कीर्ण, भिन्न ज्योतिरूप विराजमान छे.

हवे आ ज अर्थनुं कळशरूप काव्य कही एवा आत्माना अनुभवनी प्रेरणा करे छेः-

श्लोकार्थः– [चित्–शक्ति–रिक्तं] चित्शक्तिथी रहित [सकलम् अपि] अन्य सकळ भावोने [अह्नाय] मूळथी [विहाय] छोडीने [च] अने [स्फुटतरम्] प्रगटपणे [स्वं चित्– शक्तिमात्रम्] पोताना चित्शक्तिमात्र भावनुं [अवगाह्य] अवगाहन करीने, [आत्मा] भव्य आत्मा [विश्वस्य उपरि] समस्त पदार्थ समूहरूप लोकना उपर [चारु चरन्तं] सुंदर रीते प्रवर्तता एवा [इमम्] [परम्] एक केवळ [अनन्तम्] अविनाशी [आत्मानम्] आत्मानो [आत्मनि] आत्मामां ज [साक्षात् कलयतु] अभ्यास करो, साक्षात् अनुभव करो.

भावार्थः– आ आत्मा परमार्थे समस्त अन्यभावोथी रहित चैतन्यशक्तिमात्र छे; तेना अनुभवनो अभ्यास करो एम उपदेश छे. ३प.

हवे चित्शक्तिथी अन्य जे भावो छे ते बधा पुद्गलद्रव्यसंबंधी छे एवी आगळनी गाथानी सूचनिकारूपे श्लोक कहे छेः-