Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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समयसार गाथा-४९ ] [ ६३ (ऊंधो) पडयो छे. शरीर, वाणी, मन, इन्द्रियो इत्यादि हुं छुं एम विपरीत मानी बेठो छे. तेने आत्मा जे त्रिकाळ चिदानंदरसमय वस्तु छे तेमां पुद्गलनो रसगुण विद्यमान नथी तेथी ते अरस छे एम कही शरीरादिथी भेदज्ञान कराव्युं छे.

हवे बीजा बोलमां कहे छे के-पुद्गलद्रव्यना गुणोथी पण भिन्न होवाथी पोते पण रसगुण नथी माटे अरस छे. पहेला बोलमां पुद्गलद्रव्यथी भिन्नपणानी वात लीधी हती. आ बोलमां पुद्गलद्रव्यना गुणोथी भिन्नपणानी वात लीधी छे. आत्मा चैतन्य-रसस्वरूप वस्तु छे. ते पुद्गलद्रव्यना गुणोथी भिन्न छे. तेथी पोते रसगुण नथी माटे अरस छे.

त्रीजो बोलः– परमार्थे पुद्गलद्रव्यनुं स्वामीपणुं पण तेने नहि होवाथी ते द्रव्येन्द्रियना आलंबन वडे पण रस चाखतो नथी माटे अरस छे. वस्तुपणे जीवने पुद्गल-द्रव्यनुं स्वामीपणुं नथी. आ जड इन्द्रियोनो स्वामी आत्मा नथी. तेथी द्रव्य-इन्द्रियोना आलंबन वडे ते रस चाखतो नथी. आ जीभ छे तेनो स्वामी आत्मा नथी. (ए तो पौद्गलिक छे). तेथी आत्मा जीभने हलावे अने ते वडे रसने चाखे ए वात वास्तविक नथी. आम द्रव्य इन्द्रियोना आलंबन वडे आत्मा रस चाखतो नथी माटे ते अरस छे.

चोथो बोलः– पोताना स्वभावनी द्रष्टिथी जोवामां आवे तो क्षायोपशमिक भावनो पण तेने अभाव होवाथी ते भावेन्द्रियना आलंबन वडे पण रस चाखतो नथी माटे अरस छे. पोताना स्वभावनी द्रष्टिथी एटले त्रिकाळी शुद्ध ज्ञायकभावनी द्रष्टिथी जोईए तो क्षयोपशमभावनो पण जीवने अभाव छे. मति, श्रुत, अवधि अने मनःपर्ययज्ञान ए चारने शास्त्रमां विभावगुण कह्या छे. ए चारेय सम्यग्ज्ञान छे हों. अशुद्धनिश्चयनयथी ए चारनो जीवने संबंध छे तोपण शुद्धनिश्चयनयथी कांई संबंध नथी. अहीं कहे छे के जे भावेन्द्रिय द्वारा जणाय छे, ते भावेन्द्रियनो ज परमार्थे आत्मामां अभाव छे. श्री समयसार गाथा ३१मां आवे छे के भावेन्द्रिय छे ते पोताना विषयोने खंडखंड जाणे छे अर्थात् ते ज्ञानने खंडखंडरूप जणावे छे. ज्यारे आत्मा एक अखंड ज्ञायक-भावरूप छे, माटे भावेन्द्रिय निश्चयथी आत्मानुं स्वरूप नथी. (खंडवस्तु अखंडस्वरूप केम होय?)

त्यां गाथा ३१मां कह्युं छे के द्रव्येन्द्रिय, भावेन्द्रिय, अने तेमना विषयोने जे जीते ते जितेन्द्रिय छे. तेने जीतवुं एटले के ते सर्व पोताथी भिन्न छे अर्थात् ते परज्ञेय छे एम जाणवुं. ज्ञेय-ज्ञायकनी एक्ता ते संकरदोष छे. भावेन्द्रिय, तेनो विषय देव-गुरु-शास्त्र आदि तथा द्रव्येन्द्रिय ए सर्व परज्ञेय छे. आवा परज्ञेयनुं यथार्थ ज्ञान पोताथी थाय छे; पण कोने? जेने ज्ञायकनुं स्वरूपग्राही ज्ञान थाय तेने. अहीं कहे छे के भावेन्द्रिय परज्ञेय होवाथी आत्माना स्वभावभूत नथी अने तेथी आत्मा भावेन्द्रियना आलंबनथी