Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 582 of 4199

 

६४ ] [ प्रवचन रत्नाकर भाग-३ पण रस चाखतो नथी माटे अरस छे. केवी अद्भुत भेदज्ञाननी वात! आवी वातने अभ्यास करीने समजे नहि अने अनेक प्रकारना क्रियाकांड करे पण तेथी शुं?

पांचमो बोलः– सकळ विषयोना विशेषोमां साधारण एवा एक ज संवेदन-परिणामरूप तेनो स्वभाव होवाथी ते केवळ एक रसवेदनापरिणामने पामीने रस चाखतो नथी माटे अरस छे. आत्मा अखंड ज्ञायकभावरूप वस्तु छे. ते पांचेय इन्द्रियोना विषयने अखंडपणे जाणनारो छे. एक ज इन्द्रियविषयनुं वेदन अर्थात् जाणवुं एवो आत्मानो स्वभाव नथी. पांचेय इन्द्रियना ज्ञाननुं संवेदन एकसाथे थाय एवो आत्मानो स्वभाव छे. तेथी ते केवळ एक रसवेदनापरिणामने पामीने अर्थात् एक रसना ज ज्ञानने पामीने रस चाखतो नथी माटे अरस छे.

पांच बोल चाली गया. हवे छठ्ठो बोलः– सकळ ज्ञेय-ज्ञायकना तादात्म्यनो निषेध होवाथी रसना ज्ञानरूपे परिणमतां छतां पण पोते रसरूपे परिणमतो नथी माटे अरस छे. जुओ विश्व आखुं ज्ञेय छे अने भगवान आत्मा ज्ञायक छे. सर्व ज्ञेयोने जाणवानुं ज्ञायक आत्मानुं पोतानुं सामर्थ्य छे तेथी ज्ञेय-ज्ञायक संबंधनो व्यवहार होवा छतां ज्ञेय-ज्ञायकना तादात्म्यनो एटले एकरूपपणानो निषेध छे. एटले ज्ञेयने जाणवा छतां ज्ञायक ज्ञेयरूपे थतो नथी. आ जे रस छे ते ज्ञेय छे अने आत्मा तेने जाणनारो ज्ञायक छे. रसरूप ज्ञेयने जाणवा छतां आत्मानुं ज्ञान ज्ञेयपणे एटले रसरूपे थतुं नथी. [तेम ज रसने जाणतां ज्ञान रस- ज्ञानरूप (रसना ज्ञानरूप) थई जतुं नथी.] तेम ज रस (ज्ञेय) ज्ञानमां जणातां रस (ज्ञेय) ज्ञानरूप थतुं नथी, ज्ञान ज्ञानरूपे ज रहे छे, रस रसरूपे ज रहे छे. (ज्ञान ज्ञानरूप ज रहे छे.) रसनुं जे ज्ञान थाय छे ते ज्ञाननुं परिणमन छे अने ते रसने लईने नथी. तथा रस जे ज्ञेय छे ते ज्ञाननी पर्यायमां आवतो नथी. आम रसना ज्ञानरूपे पोते परिणमतां छतां पोते रसरूपे परिणमतो नथी माटे अरस छे. आम छ प्रकारे रसना निषेधथी आत्मा अरस छे. एम तुं जाण एम शिष्यने प्रतिबोध कर्यो छे.

आ ज प्रमाणे आत्मा अरूप, अगंध, अस्पर्श छे एम छ बोलथी समजी लेवुं. रस, रूप, गंध अने स्पर्श ए चारेय पुद्गलना गुणो छे अने ते सर्वथी भिन्न ज्ञायक-वस्तु आत्मा छे. माटे आत्मा अरस, अरूप, अगंध, अस्पर्श छे एम निश्चयथी जाणवुं.

हवे शब्दनी वात करे छे. जीव खरेखर पुद्गलद्रव्यथी अन्य होवाथी तेमां शब्दपर्याय विद्यमान नथी माटे अशब्द छे. जुओ, पहेलां जे रस, रूप, गंध अने स्पर्श कह्या ए तो पुद्गलना गुणो छे. पण आ शब्द छे ए गुण नथी पण पुद्गलना स्कंधनी पर्याय छे. जीव खरेखर पुद्गलद्रव्यथी अन्य एटले भिन्न छे. तेथी शब्दपर्याय जीवमां विद्यमान नथी. आ शब्द जे बोलाय छे ते आत्मामां नथी, आत्माथी नथी. हें! तो