Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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समयसार गाथा-४९ ] [ ६प बोले छे कोण? भाई! बोले ए बीजो, बोले ए आत्मा नहि. आत्मा बोलवानो भाव-राग करे ए बीजी वात छे, पण आत्मा बोले नहि. शब्द छे ए तो भाषावर्गणानुं पर्यायरूप परिणमन छे. एमां जीव निमित्त छे.

आ ध्वनि जे ऊठे छे ए तो जडनी (पौद्गलिक) पर्याय छे. आत्माथी ते ध्वनि ऊठती नथी. ‘भगवाननी दिव्यध्वनि’ एम व्यवहारथी कहेवाय छे. खरेखर भगवाननो आत्मा दिव्यध्वनिनो करनारो (र्क्ता) नथी. दिव्यध्वनि छे ते तेना कारणे भाषावर्गणामां भाषारूप (शब्दरूप) पर्याय थवानी जन्मक्षण छे तेने लईने थाय छे. आ आत्माने धर्म केम थाय एनी वात चाले छे हों. शब्द माराथी (जीवथी) थाय एम मानवुं ए मिथ्यात्व छे अधर्म छे. शब्द जे थाय तेने स्वना ज्ञानपूर्वक हुं जाणुं एवी यथार्थ मान्यता (निर्विकल्प प्रतीति) एनुं नाम धर्म छे.

प्रश्नः– ज्ञान छे ते शब्दनो र्क्ता छे एम धवलमां आवे छे ने?

उत्तरः– हा, आवो प्रश्न ‘खानिया चर्चा’मां पण आव्यो छे. भाई! ए तो त्यां निमित्तपणुं बताव्युं छे. ज्ञान कांई शब्दनी पर्यायनो र्क्ता नथी. शब्दनी पर्यायकाळे ज्ञान तेमां निमित्त छे तेथी उपचारथी ज्ञान शब्दनो र्क्ता छे एम कह्युं छे, खरेखर र्क्ता छे नहि. लोकालोक छे ते केवळज्ञानमां निमित्त छे (लोकालोकमां शब्दो पण आवी गया), एनो अर्थ शुं? के लोकालोक लोकालोकथी छे अने केवळज्ञान केवळज्ञानथी छे. लोकालोकने कारणे केवळज्ञाननी पर्याय थाय छे एम नथी. केवळज्ञाननी पर्याय पोते पोताथी थाय छे. लोकालोक छे माटे केवळज्ञाननी पर्याय थाय छे एम छे ज नहि. केवळज्ञाननी पर्यायनुं परिणमन (लोकालोकथी निरपेक्ष) स्वयं स्वतंत्र छे अने लोकालोकनी हयाती (केवळज्ञानथी निरपेक्ष) स्वयं स्वतंत्र छे.

केवळज्ञान लोकालोकने जाणे छे एम कहेवुं ए तो असद्भूत-व्यवहारनयनो विषय छे. खरेखर तो पोतानी पर्यायने ज जाणे छे. श्री समयसार कळशटीकामां कळश २७१मां आवे छे के-‘हुं ज्ञायक अने समस्त छ द्रव्यो मारां ज्ञेय-एम तो नथी. तो केम छे?’ के ज्ञाता पोते, ज्ञान पोते अने ज्ञेय पोते ज छे. अहीं कहे छे के शब्दनुं ज्ञान शब्दने लईने थतुं नथी. शब्दनी पर्यायनुं ज्ञान आत्मामां पोताने कारणे थाय छे. वळी जे शब्दपर्याय छे ते आत्माथी थाय छे एम नथी केमके आत्मा पुद्गलद्रव्यथी भिन्न छे. आम शब्दपर्याय छे ते ज्ञायकस्वभावी आत्मामां विद्यमान नथी माटे आत्मा अशब्द छे. अहो! शुं गजब भेदज्ञाननी वात छे!!

बीजो बोलः– पुद्गलद्रव्यना पर्यायोथी पण भिन्न होवाथी पोते पण शब्दपर्याय नथी माटे अशब्द छे. पहेला बोलमां जीव पुद्गलद्रव्यथी भिन्न कह्यो हतो अने आ