Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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समयसार गाथा-४९ ] [ ६७ शब्दरूपे थतो नथी. माटे आत्मा अशब्द छे. आम छ प्रकारे शब्दना निषेधथी आत्मा अशब्द छे एम जाणवुं.

हवे ‘अनिर्दिष्टसंस्थान’ना चार बोल कहे छेः-

पहेलो बोलः– पुद्गलद्रव्य वडे रचायेलुं जे शरीर तेना आकारथी जीवने संस्थानवाळो कही शकातो नथी माटे जीव अनिर्दिष्टसंस्थान छे. आ शरीरनो जे आकार छे ए तो जडनो आकार छे, ए आत्मानो आकार नथी. आत्मामां पुद्गलथी रचायेला जड देहना आकारनो अभाव छे. आत्मा जडना आकारवाळो नहि होवाथी जीव पोते अनिर्दिष्टसंस्थान छे.

बीजो बोलः– पोताना नियत स्वभावथी अनियत संस्थानवाळा अनंत शरीरोमां रहे छे माटे अनिर्दिष्टसंस्थान छे. भगवान आत्मा जे असंख्यातप्रदेशी छे ए तेनो नियत स्वभाव छे. आ भिन्न भिन्न शरीरना आकारो-एकेन्द्रिय, बेइन्द्रिय, त्रणइन्द्रिय, चारइन्द्रिय अने पंचेन्द्रियना शरीरना जे आकारो छे ते अनियत छे. आवा अनियत आकारोवाळा अनंत शरीरोमां ते रहे छे तेथी ते नियत संस्थानवाळो कही शकातो नथी माटे ते अनिर्दिष्टसंस्थान छे.

त्रीजो बोलः– संस्थान नामकर्मनो विपाक पुद्गलोमां ज कहेवामां आवे छे (तेथी तेना निमित्तथी पण आकार नथी) माटे अनिर्दिष्टसंस्थान छे. संस्थान नामकर्मनुं फळ पुद्गल- शरीरमां आवे छे, आत्मामां नहि. तेथी तेना निमित्ते थतो आकार आत्माने नथी. आत्माने पोतानो असंख्यातप्रदेशस्वरूप आकार तो छे पण जडनो आकार आत्माने नथी. प्रदेशत्वगुणना कारणे आत्माने पोतानो आकार छे. आकाशद्रव्यमां पण प्रदेशत्वगुण छे. प्रदेशत्वगुणना कारणे आकाशने, क्षेत्रथी अमर्यादित होवा छतां, पोतानो आकार छे. आम आत्माने पोतानो आकार होवा छतां संस्थान नामकर्मना निमित्ते रचातो जे जड देहनो आकार ते तेने नथी माटे ते अनिर्दिष्टसंस्थान छे.

चोथो बोलः– जुदां जुदां संस्थानरूपे परिणमेली समस्त वस्तुओनां स्वरूप साथे जेनी स्वाभाविक संवेदनशक्ति संबंधित छे एवो होवा छतां पण जेने समस्त लोकना मिलापथी रहित निर्मळ अनुभूति थई रही छे एवो होवाथी पोते अत्यंतपणे संस्थान विनानो छे माटे अनिर्दिष्टसंस्थान छे.

जुओ, भाई, आत्मामां त्याग-उपादानशून्यत्व नामनी एक शक्ति छे. ए शक्तिना कारणे परने ग्रहण करवुं के परनो त्याग करवो-एनाथी आत्मा शून्य छे. परद्रव्यना ग्रहण- त्यागथी तो आत्मा त्रणे काळ शून्य छे ए वात तो छे पण अहीं कहे छे के जगतनी चीजो- शरीर, मकान, बंगला, दाळ, भात, रोटला इत्यादि-जे अनेक आकारे रहेली छे तेनुं ज्ञान आत्मामां थवा छतां ए अनेक आकारपणे ज्ञान थतुं नथी. अहो!