६८ ] [ प्रवचन रत्नाकर भाग-३ स्वनुं ज्ञान अने अनेक आकाररूपे परिणमेली अनेक चीजोनुं ज्ञान-एनी निर्मळ अनुभूति आत्मामां थई रही छे. भाई! आ तो सर्वज्ञ परमेश्वरनी दिव्यध्वनिमां जे वात आवी ते दिगंबर संतोए कही छे. आवी वात बीजे कयांय छे नहि. अहीं कहे छे के आत्मा परना आकारपणे नहि थतो होवाथी अत्यंतपणे संस्थान विनानो छे; माटे ते अनिर्दिष्टसंस्थान छे. आम चार हेतुथी संस्थाननो निषेध कह्यो.
हवे ‘अव्यक्त’ना छ बोल कहे छेः-
छ द्रव्यस्वरूप लोक जे ज्ञेय छे अने व्यक्त छे तेनाथी जीव अन्य छे माटे अव्यक्त छे. जगतमां छ द्रव्य छे ते ज्ञेय छे. अनंत आत्माओ, अनंतानंत परमाणुओ, असंख्य कालाणुओ, एक धर्मास्तिकाय, एक अधर्मास्तिकाय अने एक आकाश-एम छ द्रव्यो अनादिअनंत भगवाने जोयां छे. आ छ द्रव्योमां देव-गुरु-शास्त्र, शेत्रुंज्य, सम्मेदशिखर इत्यादि सर्व आवी गयुं. आ छ द्रव्योथी तो आत्मा अन्य एटले भिन्न छे ज, पण ए छ द्रव्योने जाणनारी एक समयनी पर्यायथी पण त्रिकाळी आत्मा भिन्न छे. अहाहा! छ द्रव्योने जाणनारी पर्याय एम जाणे छे के छ द्रव्यथी मारी चीज भिन्न छे. छ द्रव्यो व्यक्त अने ज्ञेय छे. तेनाथी भिन्न भगवान आत्मा ज्ञायक अने अव्यक्त छे.
भाई! पंचेन्द्रिय संज्ञीपणुं मळवुं अने तेमां पण आर्यकुळ मळवुं ए अति दुर्लभ छे. त्यां पण सद्गुरुनो योग थवो, सत्यनुं श्रवण मळवुं तथा तेनां ग्रहण अने धारणा थवां ए एथीय विशेष दुर्लभ छे. तोपण अहीं सुधी जीव अनंतवार आव्यो छे. परंतु तेणे सम्यक् श्रद्धान अनंतकाळमां एक समय पण कर्युं नथी. अहीं कहे छे के भगवान आत्मा छ द्रव्योनो जाणनार होवा छतां एनाथी ते अत्यंत भिन्न छे. भगवान श्री कुंदकुंदाचार्यदेवे गाथामां जे ‘अव्यक्त’ शब्द कह्यो तेनो भाव श्री अमृतचंद्राचार्यदेवे भगवती टीकामां आ प्रमाणे स्पष्ट कर्यो छे.
भाई! आत्मानुं होवापणुं छ द्रव्यने लईने नथी. ज्ञाननी पर्यायमां छ द्रव्यनुं ज्ञान थयुं ते पोताथी थयुं छे, छ द्रव्यने लईने थयुं नथी. तथा छ द्रव्यनुं ज्ञान छे माटे छ द्रव्यनुं होवापणुं छे एम पण नथी. छ द्रव्य जे ज्ञेय अने बाह्य छे ते व्यक्त छे. तेने जाणनारी पर्याय पण व्यक्त छे. ए व्यक्त पर्यायमां एनाथी भिन्न आत्मा अव्यक्त छे तेने तुं जाण एम कहे छे.
श्री धर्मदास क्षुल्लके स्वात्मानुभव मननमां आत्माने, छ द्रव्यथी अने एने जाणनारी पर्यायथी भिन्न होवाथी सप्तम् द्रव्य कह्युं छे. आत्मा छे तो छ द्रव्यनी अंदर, पण द्रष्टिना विषयभूत त्रिकाळी अव्यक्त द्रव्यने एककोर ‘राम’ कहीने एनाथी जे कोई भिन्न छे एने एककोर ‘गाम’ एम कह्युं छे. एककोर छ द्रव्य अने तेने जाणनारी ज्ञाननी