समयसार गाथा-४९ ] [ ६९ पर्याय ए बधुं व्यक्त छे, तो बीजी कोर अव्यक्त भगवान त्रिकाळी ध्रुव ज्ञायकमूर्ति एनाथी भिन्न छे-एम तुं जाण.
द्रष्टिनो विषय त्रिकाळी शुद्ध आत्मा द्रव्य तरीके तो प्रगट छे. पण पर्याय जे व्यक्त- प्रगट छे ते पर्यायमां द्रव्य आवतुं नथी ते अपेक्षाए तेने अहीं अव्यक्त कह्युं छे. अनंत अनंत गुणनो पिंड सच्चिदानंद प्रभु अस्तिपणे मोजुद छे, प्रगट छे, व्यक्त छे. पण प्रगट पर्यायनी अपेक्षाए तेने अव्यक्त कह्यो छे. भाई! आवा आत्माने जाणे नहि, अर्थात् आत्मा पोते कोण छे, कयां छे, केवडो छे ए जाणे नहि अने धर्म थई जाय? धूळमांय न थाय. (एटले के आवा आत्माने जाण्या विना कदी धर्म न थाय.) भले ने सामायिक, पोसा, पडिकमण, व्रत, उपवास इत्यादि क्रियाकांड करे. एमां धर्म कयां छे? ए तो राग छे. तेथी पुण्य थाय अने एमां धर्म माने तो मिथ्यात्व थाय.
भगवान! तुं अखंड एक शुद्ध चैतन्यमूर्ति प्रभु छो ने! छ द्रव्यमां तो तुं नथी पण छ द्रव्यनुं ज्ञान करनारी एक समयनी व्यक्त पर्याय जेटलो पण तुं नथी. एक समयनी पर्याय जेटलो आत्माने माननार मूढ मिथ्याद्रष्टि छे. श्री समयसारना परिशिष्टमां नित्य-अनित्य, एक-अनेक, इत्यादि चौद कळशो आवे छे एमां आ वात लीधी छे. वळी एक समयनी पर्यायने जे मानता नथी ते पण छ द्रव्यने ज नहि माननारा मिथ्याद्रष्टि छे, केमके छ द्रव्यनुं ज्ञान पर्यायमां थाय छे. तेथी पर्यायने नहि माननारा छ द्रव्यने मानता नथी अने तेथी तेओ मिथ्याद्रष्टि ज छे. अहीं कहे छे के आ छ द्रव्यस्वरूप जे लोक छे ते ज्ञेय छे अने व्यक्त छे अने तेथी भिन्न भगवान आत्मा ज्ञायक अव्यक्त छे. पाठमां जीव शब्द छे. पण जीव कहो के आत्मा, बन्ने एक ज वात छे. वेदांतवाळा जीव अने आत्मा जुदा छे एम कहे छे; पण ए बराबर नथी.
एक समयनी ज्ञानपर्यायनुं अस्तित्व माने त्यारे छ द्रव्यनुं अस्तित्व मान्युं कहेवाय. अने छ द्रव्यनुं ज्ञान जे व्यक्त पर्यायमां थाय छे एनी द्रष्टि छोडी त्रिकाळी अव्यक्तनी द्रष्टि करे त्यारे एणे स्वद्रव्यने मान्युं कहेवाय. धर्म केम थाय एनी आ वात छे. भाई! तारी पर्यायमां छ द्रव्य जणाय छतां छ द्रव्यने लईने ए पर्याय छे एम नथी. आवी एक समयनी जे ज्ञाननी पर्याय, जेमां त्रिकाळी आत्मा व्यापतो नथी ए पर्यायमां तुं छ द्रव्य रहित शुद्ध अव्यक्त आत्माने जाण. एने जाणतां तने सम्यग्दर्शन-ज्ञान अने धर्म थशे. आवी वात सांभळवानी पण जेने फुरसद मळे नहि ते समजे कयारे अने तेनो प्रयोग करे कयारे?
श्री नियमसार शास्त्रमां निर्मळ पर्यायने पण परद्रव्य कही छे. स्ववस्तु अखंड, अभेद, एक छे. तेनुं ज्ञान जेने थाय तेने साचुं ज्ञान थाय छे. ए सम्यग्ज्ञान थाय पर्यायमां पण ए ज्ञाननुं ज्ञेय त्रिकाळी शुद्ध ज्ञायक भगवान छे, पर्याय नहि. पर्यायने लक्ष