Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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७० ] [ प्रवचन रत्नाकर भाग-३ करी थतुं ज्ञान यथार्थ ज्ञान नथी. आवी शुद्ध तत्त्वनी वात समजे नहि अने अनेक प्रकारना क्रियाकांड करे पण ए तो बधुं रणमां पोक मूकवा जेवुं छे. रणमां पोक मूकवी एटले? एटले एम के रणमां एनी पोक कोई सांभळे नहि अने एनी पोक कदी बंध थाय नहि. भाई! मात्र क्रियाकांडथी भवनां दुःख न मटे.

छ द्रव्यस्वरूप जे लोक छे ते बाह्य छे, व्यक्त छे, अने भगवान आत्मा अभ्यंतर, अव्यक्त छे. तेथी शुद्ध ज्ञायकवस्तु छ द्रव्यस्वरूप लोकथी भिन्न छे. आ अनंता सिद्धो, वीस विद्यमान तीर्थंकरो, लाखो केवळीओ, परमेष्ठी भगवंतो अने दिव्यध्वनि इत्यादि सर्वथी (आखा लोकथी) त्रिकाळी शुद्ध ज्ञायकवस्तु भिन्न छे. अव्यक्त एवो आत्मा छ द्रव्यथी तो भिन्न छे ज, पण ते संबंधीनो भेदज्ञानना विचारनो जे सूक्ष्म विकल्प ते पण छ द्रव्यमां आवी जाय छे तेथी एनाथी पण ज्ञायक भिन्न छे.

पूर्णानंदनो नाथ आत्मा सच्चिदानंदस्वरूप भगवान छे. तेने अव्यक्त विशेषणथी अहीं समजाव्यो छे. सम्यग्ज्ञाननी पर्याय एम जाणे छे के छ द्रव्यना स्वरूपथी मारुं स्वरूप भिन्न छे. एककोर भगवान आत्मा ज्ञानगोळो अने एककोर आखुं लोकालोक-बन्ने भिन्न भिन्न. आ लोकालोकने एक समयनी पर्याय जाणे ते पर्यायनुं पोतानुं सामर्थ्य छे. ते पर्याय एम विचारे छे के हुं ज्ञायक छ द्रव्यथी भिन्न छुं. जाणे सातमुं द्रव्य! क्षुल्लक धर्मदासजीए शुद्ध द्रव्यवस्तुने सप्तम् द्रव्य कह्युं छे. छ द्रव्यथी हुं भिन्न छुं एम विचारनारी पर्याय स्वद्रव्य तरफ ढळे छे. विकल्पमां एम विचारे छे त्यांसुधी सूक्ष्म भेदनो अंश छे पण ज्यां पर्याय स्वद्रव्यमां ढळे छे एटले ए भेद पण छूटी जाय छे. भाई! आ तो गूढ भावो सादी भाषामां कहेवाय छे.

भगवान ज्ञायकस्वरूप आत्मामां ढळीने जे पर्याय प्रगट थई ते निश्चय मोक्षमार्ग छे. ए निश्चय मोक्षमार्गनी पर्यायथी पण त्रिकाळी वस्तु भिन्न छे. ज्ञाननी पर्यायमां छ द्रव्यने जाणवानी ताकात छे तेथी ए तेने जाणे, पण ए पर्याय एम जाणे छे के ए छ द्रव्योथी भिन्न ‘आ’ हुं छुं. ‘आ’ हुं एटले जे द्रव्य त्रिकाळी ते हुं छुं. पर्याय एम जाणे छे के हुं एक, अखंड, ध्रुव चैतन्यस्वभावी अव्यक्त चीज छुं. आ व्यक्त पर्याय अव्यक्तने आवो जाणे छे. अव्यक्त, अव्यक्तने केम जाणे? बापु! जैनदर्शन तो विश्वदर्शन छे. विश्वदर्शन एटले? एटले छ द्रव्यस्वरूप जे विश्व छे तेने यथार्थ जणावनारुं अने ते जणावीने परथी जीवनी भिन्नता देखाडनारुं ए साचुं दर्शन छे.

शास्त्रोनुं जे ज्ञान छे ते पण छ द्रव्योमां समाय छे, केमके ते ज्ञानना लक्षे स्वद्रव्यनुं लक्ष थतुं नथी. तेनुं लक्ष छोडीने द्रष्टिनो विषय जे त्रिकाळी शुद्ध द्रव्य तेनुं लक्ष करे त्यारे ज्ञान सम्यक् थाय छे. भाई! धर्म करवो छे पण धर्म केम थाय तेनी खबर विना तुं धर्म केवी रीते करीश? शास्त्रने जाणे, तेनी व्यवहार श्रद्धा करे पण शुद्ध ज्ञायकस्वभावी भगवान