Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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समयसार गाथा-४९ ] [ ७१ आत्माना आश्रये प्रगट थता वीतरागी आनंदामृतनो स्वाद न ले तो आत्मज्ञान केम थाय? वस्तु एकली अतीन्द्रिय आनंदमय छे. ए आनंदनो नमूनो पर्यायमां न आवे त्यां सुधी आखी चीज आवी छे एवी प्रतीति केम थाय? परमात्मप्रकाशमां आवे छे के शिष्य प्रभाकर भट्ट आचार्य श्री योगीन्द्रदेव प्रति बहु भक्तिथी विनम्र थई पूछे छे के-हे स्वामी! एवो शुद्धात्मा कोण छे जे जाणवो जोईए अने जेने जाण्या विना अनंतकाळमां आ आत्माने वीतरागी सुखामृतनो स्वाद न आव्यो, केवळ दुःख ज थयुं? भाई! निज शुद्धात्माने स्वसंवेदनप्रत्यक्ष कर्या विना मात्र शास्त्रज्ञान धर्म करवामां कांई कार्यकारी नथी.

अने आ व्यवहारवाळा तो बिचारा कयांय (दूर) पडया छे. व्रत, तप, आदिनो राग जे व्यवहार छे ए पण छ द्रव्यमां आवी जाय छे. एनाथी तो भिन्न पडवानुं छे. जेनाथी भिन्न पडवुं छे ए मदद केम करे? ‘हुं आवो छुं’ एम जे व्यवहारनो विकल्प ऊठे ते विकल्पनो पण विषय आत्मा नथी. श्री जयसेन आचार्यदेवे आ बोलनी टीकामां एम लीधुं छे के विकल्पना विषयरहित वस्तु सूक्ष्म अव्यक्त छे. ज्ञायक आत्मा ए तो निर्विकल्प ध्याननो विषय छे. निर्विकल्पता ए ध्यान छे तेनो विषय अखंड आत्मवस्तु छे. ध्याननुं ध्येय ध्यान नथी पण ध्याननुं ध्येय अखंड शुद्ध आत्मवस्तु छे. एक अखंड शुद्ध चिन्मात्र सिवाय बधुंय परमां-छ द्रव्यमां समाई जाय छे. आवी वात छे.

बीजो बोलः– कषायोनो समूह जे भावकभाव व्यक्त छे तेनाथी जीव अन्य छे माटे अव्यक्त छे. भावकभाव एटले शुं? कर्म जे विकार थवामां निमित्त छे तेने भावक कहे छे अने विकारने भावकनो भाव कहे छे. विकार ए भगवान आत्मानो भाव नथी. अज्ञानद्रष्टिमां जीव भावक अने विकार एनो भाव बने छे अने स्वभावद्रष्टि थतां कर्म जे निमित्त ते भावक छे अने विकार ए तेनो भाव छे. आवो भावकभाव ते व्यक्त छे, बाह्य छे, ज्ञेय छे अने तेनाथी भगवान आत्मा अन्य छे माटे अव्यक्त छे.

कषायोनो समूह लीधो छे ने? एटले विकल्पो शुभ हो के अशुभ, ए सर्व विकल्पोनो समूह जे भावकभाव ते व्यक्त छे अने तेनाथी भिन्न भगवान आत्मा अव्यक्त छे. र्क्ता-कर्म अधिकारमां लीधुं छे ने के-हुं अबद्ध छुं, शुद्ध छुं, निर्मळ छुं, एक छुं, नित्य छुं, इत्यादि बधा विकल्पो छे. अहीं कहे छे आवा विकल्पो के बीजा कोई विकल्पो ए सर्व विकल्पोथी भगवान आत्मा भिन्न छे, अन्य छे. कषायभावो जे व्यक्त छे तेनाथी ज्ञायकवस्तु अन्य छे ए अपेक्षाए तेने अव्यक्त कहे छे. वस्तुद्रष्टिथी तो ध्रुव ज्ञायकवस्तु सदा प्रगट ज छे.

जे व्यवहारना विकल्पो छे तेनाथी भगवान आत्मा भिन्न छे. जे भिन्न छे एवा विकल्पोथी ए केम प्राप्त थाय? जो विकल्पोथी प्राप्त थाय तो आत्मा विकल्पथी अभिन्न ठरे, अने ते विकल्पो जीवनो स्वभाव थई जाय. परंतु भगवान आत्मा तो पोतानी