समयसार गाथा-४९ ] [ ७३ द्रव्योथी भिन्न शुद्ध छुं एवो जे सूक्ष्म विकल्प ते भावकभाव छे, व्यक्त छे अने तेनाथी जीव अन्य छे, अव्यक्त छे. बे बोल थया.
त्रीजो बोलः– चित्सामान्यमां चैतन्यनी सर्व व्यक्तिओ निमग्न छे माटे आत्मा अव्यक्त छे. जे पर्याय भविष्ये व्यक्त थवानी छे अने जे व्यक्त थई गई ते बधी पर्यायो चैतन्यसामान्यमां अंतर्लीन छे. वर्तमान पर्याय चैतन्यमां निमग्न नथी. जो वर्तमान पर्याय पण तेमां निमग्न होय तो जाणवानुं कार्य कोण करे? वर्तमान पर्याय सिवायनी भूत- भविष्यनी सघळी पर्यायो चैतन्यमां अंतर्लीन छे. माटे तुं आत्माने अव्यक्त जाण. गाथामां ‘जाण’ एम कीधुं छे ने? एटले जाणनारी वर्तमान पर्याय तो चित्सामान्यनी बहार रही. ए व्यक्त पर्यायमां आ ज्ञायकवस्तु जे अव्यक्त छे एने जाण-एम अहीं कहेवुं छे.
पाणीनुं तरंग जेम पाणीमां समाई जाय छे तेम व्यय थयेली पर्याय द्रव्यरूप थई जाय छे. निर्मळ पर्याय प्रगट होय त्यारे ते क्षयोपशम, क्षायिक के उपशमभावरूप होय छे पण अंदर द्रव्यमां समाई जाय त्यारे पारिणामिकभावरूप थई जाय छे. (उद्रय, उपशम, क्षयोपशम के क्षायिकरूप रहेती नथी.)
भूतकाळनी अने भविष्यकाळनी बधी पर्यायो द्रव्यसामान्यमां पारिणामिकभावे छे. व्यक्त ज्ञाननी पर्यायमां जे अव्यक्त सामान्यनुं ज्ञान थयुं ते निश्चयनुं ज्ञान छे. निश्चयना ज्ञान साथे वर्तमान पर्यायनुं ज्ञान करवुं ते प्रमाणज्ञान छे. (निश्चयना ज्ञानपूर्वक) पर्याय पोते एकलुं पर्यायनुं ज्ञान करे ते व्यवहारनुं ज्ञान छे. प्रमाणज्ञान अने नयज्ञान बन्ने पर्याय छे.
अरे! जगतना जीवोने पोते मरीने कयां जशे एनी पडी नथी. पण भाई, आत्मा तो अविनाशी तत्त्व छे. ए कयांक तो रहेशे ज. चार गति अने चोरासीना चक्करमां आत्माने कोई शरण नथी, भाई. पोते मरीने कयां जशे एवी जेने संसारनी भीति लागी छे ते भव्य जीव आत्मानुं ज, -शुद्ध चैतन्यनुं ज शरण शोधे छे. निश्चयनयनो विषयभूत जे ध्रुव एक अखंड चैतन्यसामान्यवस्तु छे ते एक ज जीवने शरणरूप छे. पर्यायने एक द्रव्य ज शरणभूत छे. तेथी कहे छे के व्यक्त पर्यायमां तुं एक शुद्ध अव्यक्तने जाण.
द्रव्यने प्रसिद्ध करनारी प्रगट पर्याय ते द्रव्यमां घूसी जती नथी. जो द्रव्यमां घूसी जाय तो आ द्रव्य छे एम कोण जाणे? अव्यक्तने जाणनार पर्याय तो अव्यक्तथी भिन्न रहीने तेने जाणे छे. द्रव्यनी प्रतीति करनारी पर्याय द्रव्यमां घूसी जाय तो प्रतीति करनार कोई रहेतुं नथी. तेथी प्रगट वर्तमान पर्याय द्रव्यथी भिन्न रहीने प्रतीति करे छे. आवी वात छे.
भाई! आ तो भगवानना दरबारनी (समोसरणमां सांभळेली) वातो छे. त्रिलोकीनाथ