७४ ] [ प्रवचन रत्नाकर भाग-३ सर्वज्ञ परमेश्वरनी दिव्यध्वनिमां जे आव्युं ते अनुसार आ शास्त्रो रचायां छे, ते शास्त्रोमांनुं आ ‘समयसार’ एक शास्त्र छे. आचार्यदेवे भव्यजीवोने आ ‘समयसार’ रूप भेटणुं आप्युं छे. भगवानने भेटवुं होय तो आ ‘समयसार’ने समज. अहो! दिगंबर संतोए तो जगतने हथेळीमां आत्मा बताव्यो छे. जेनी योग्यता हशे ते प्राप्त करशे.
चोथो बोलः– क्षणिक व्यक्तिमात्र नथी माटे अव्यक्त छे. एक समयनी पर्याय जे व्यक्त प्रगट छे ते क्षणिक छे; ज्यारे आत्मा शुद्ध चैतन्यसामान्य त्रिकाळ छे. तेथी क्षणिक व्यक्तिमात्र एटले प्रगट पर्याय जेटलो आत्मा नथी माटे अव्यक्त छे. आत्मा एनाथी अन्य अव्यक्त छे. तात्पर्य एम छे के पर्याय एक समयमात्र सत् होवाथी ते द्रष्टि करवा योग्य अने आश्रय करवा योग्य नथी. माटे अनंतकाळमां जेनुं लक्ष कर्युं नथी एवा एक शुद्ध त्रिकाळी अव्यक्त आत्मस्वभावनुं लक्ष कर. (अनादिना) अलक्ष्यने लक्षमां ले.
भाई! इन्द्रियो मोळी न पडे अने रोग घेरो न घाले ते पहेलां चिन्मात्र शुद्ध आत्मानी द्रष्टि करी लेवा जेवी छे. आ तो जेनो पुरुषार्थ नबळो छे तेने आवी शिखामण आपी छे. अन्यथा सातमा नरकनी असह्य पीडा भोगवतो नारकी पण उग्र पुरुषार्थ करीने आत्मज्ञान प्राप्त करी शके छे. वृद्धावस्था आदि गमे तेवा प्रसंगमां पण आत्मा पोतानो पुरुषार्थ उपाडी शके छे, कारण के परद्रव्य अने परद्रव्यनी पर्यायने भगवान आत्मा अडतो पण नथी. शरीरनी गमे तेवी वेदना होय ते वेदनाने आत्मा स्पर्शतो नथी. तेथी तो कहे छे के क्षणिक व्यक्तिने (पर्यायने) तुं अव्यक्त (आत्मा) तरफ लई जा; तने आत्मा मळशे, आत्मानो भेटो थशे अने आनंद आवशे, सुख थशे.
पांचमो बोलः– व्यक्तपणुं तथा अव्यक्तपणुं भेळां मिश्रितरूपे तेने प्रतिभासवा छतां पण ते व्यक्तपणाने स्पर्शतो नथी माटे अव्यक्त छे. एक समयनी पर्यायमां पर्याय अने द्रव्य बन्ने साथे प्रतिभासे छे छतां भगवान द्रव्यस्वभाव पर्यायने अडतो, स्पर्शतो नथी. श्री प्रवचनसार गाथा १७२ना अलिंगग्रहणना २०मां बोलमां एम लीधुं छे के पर्याय द्रव्यने स्पर्शती नथी. (त्यां विवक्षा जुदी छे). ए वात अहीं नथी बताववी. अहीं तो द्रव्य पर्यायने स्पर्शतुं नथी एम बताववुं छे.
व्यक्त एटले प्रगट ज्ञाननी पर्याय अने अव्यक्त एटले त्रिकाळी ध्रुव ज्ञायक ए बन्नेनुं भेगुं मिश्रपणे एकसाथे पर्यायमां ज्ञान थाय छे पण ज्ञायक द्रव्य ज्ञाननी पर्यायने स्पर्शतुं नथी एटले द्रव्य पर्यायमां व्यापतुं नथी एम कहे छे. अहाहा! आ व्यक्त पर्यायमां अव्यक्तनां ज्ञान-श्रद्धान आव्यां छतां ते अव्यक्त, अव्यक्तनां जेमां ज्ञान-श्रद्धान आव्यां ते पर्यायने स्पर्शतो नथी. अव्यक्त व्यक्तमां आवतो नथी, व्यापतो नथी. एटले के पर्याय पर्यायरूपे रहे छे अने द्रव्य द्रव्यरूपे रहे छे, आवो झीणो मार्ग! (उपयोगने सूक्ष्म करीने समजवो जोईए).