Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 593 of 4199

 

समयसार गाथा-४९ ] [ ७प

आ द्रव्य छे, आ ज्ञानगुण छे अने आ जाणनारी पर्याय छे-एम द्रव्य, गुण, पर्याय त्रणेनुं पर्यायमां ज्ञान थाय छे. आम द्रव्य-पर्यायनुं मिश्रितपणे ज्ञान होवा छतां अव्यक्त एवो भगवान आत्मा स्व-परप्रकाशक एवी ज्ञाननी व्यक्त पर्यायने स्पर्शतो नथी; अर्थात् ते पर्याय द्रव्यमां आवती नथी. अहा! पोता सहित छ द्रव्यनुं एक समयनी पर्यायमां ज्ञान थाय छतां ते ज्ञान करनारी पर्यायमां ज्ञायक भगवान व्यापतो नथी, भिन्न ज रहे छे.

अहाहा! अनंत केवळज्ञाननी पर्यायो एक ज्ञानगुणमां (शक्तिरूपे) पडी छे, श्रद्धानी अनंत पर्यायो एक श्रद्धागुणमां पडी छे, निर्मळ चारित्रनी अनंत पर्यायो एक चारित्रगुणमां पडी छे, तथा अतीन्द्रिय आनंदनी अनंत पर्यायो एक आनंदगुणमां पडी छे. आम प्रत्येक गुणनी अनंत पर्यायो ते ते गुणमां शक्तिरूपे पडी छे. एवा जे गुण अने गुणोने धरनार त्रिकाळी द्रव्य तेने अही अव्यक्त कह्युं छे. अने ए द्रव्यने जाणनारी जे वर्तमान प्रगट पर्याय तेने व्यक्त कही छे. वस्तु ध्रुव द्रव्य पोते पोताथी व्यक्त प्रगट ज छे पण अहीं पर्याय जे व्यक्त छे तेनाथी ते अन्य छे ए अपेक्षाए तेने अव्यक्त कह्युं छे. एवा अव्यक्त त्रिकाळी द्रव्यनुं अने व्यक्त पर्यायनुं एकसाथे ज्ञान जे पर्यायमां थाय ते पर्यायने द्रव्य स्पर्शतुं नथी. अव्यक्त व्यक्तने स्पर्शतो नथी. अहा! वस्तु सूक्ष्म अने गंभीर छे. अहीं द्रव्य अने पर्यायने जुदा सिद्ध करे छे. ज्ञायक एवो आत्मा पर द्रव्यथी तो भिन्न छे ज, परंतु पोताने जाणनारी-देखनारी पर्यायथी पण भिन्न छे एम सिद्ध करे छे.

अहो! सम्यग्दर्शननो विषय कोई अद्भुत अचिंत्य छे. भाई! अगियार अंगनां जाणपणां अनंतवार कर्यां. एक आचारांगना अढार हजार पद छे. एक एक पदमां प१ करोड झाझेरा श्लोक छे. एम आचारांग करतां सूयडांगमां बमणा. एम उत्तरोत्तर दरेक अंगमां बमणा छे. आवा अगियार अंगनुं ज्ञान तेणे कंठस्थ कर्युं तथा नव पूर्वनी लब्धि पण अनंतवार प्रगटी. पण अरेरे! शुद्धात्मानी द्रष्टिना थई अने तेथी मिथ्यात्व ना टळ्‌युं.

भाई! त्रिलोकनाथ सर्वज्ञ परमात्मानी दिव्यध्वनिमां जे आव्युं ते अनुसार कुंदकुंदादि आचार्य भगवंतोए आ शास्त्र अने आगम रच्यां छे. श्री बनारसीदासे कह्युं छे ने के-

‘ॐकार ध्वनि सुनि, अर्थ गणधर विचारै,
रची आगम उपदेश, भविक जीव संशय निवारै.’

अहाहा! ते वाणी केवीछे? नियमसार गाथा १०८ मां दिव्यध्वनिना स्वरूपनुं कथन करतां कह्युं छे के-‘भगवान अर्हंतना मुखारविंदथी नीकळेलो, सकळ जनताने