Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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७६ ] [ प्रवचन रत्नाकर भाग-३ श्रवणनुं सौभाग्य मळे एवो, सुंदर-आनंदस्यंदी’ भगवाननो उपदेश होय छे; ते अनक्षरात्मक होय छे अने भव्य जीवोने अमृत जेवो लागे छे. श्रीमद राजचंद्रे पण कह्युं छेः-

‘वचनामृत वीतरागनां, परम शांतरसमूळ;
औषध जे भवरोगनां, कायरने प्रतिकूळ.’

आ दिव्यध्वनि अनुसार भगवान कुंदकुंदाचार्य अहीं एम कहे छे के-एक समयनी पर्यायमां छ द्रव्यनुं ज्ञान थाय छे. ए छ द्रव्यमां अनंत सिद्धो पण आवी गया. ते एक एक सिद्धने केवळज्ञान वर्ते छे. एवा अनंत सिद्धो अने स्वद्रव्य पर्यायमां जणाय छे. एटले के पर्यायमां पर्यायनो प्रतिभास थाय छे अने पर्यायमां द्रव्यनो प्रतिभास थाय छे. जेम दर्पणमां बिंबनुं प्रतिबिंब देखाय छे तेम एक समयनी पर्यायमां आखा द्रव्यनो प्रतिभास थाय छे. एवुं द्रव्य-पर्यायनुं एकसाथे मिश्रपणे एक समयमां ज्ञान होवा छतां पर्यायने द्रव्य स्पर्शतुं नथी. गजब वात छे! जेने अंतरमां बेसे तेनुं भव-भ्रमण मटया वगर रहे नहि एवी वात छे.

छठ्ठो बोलः– पोते पोताथी ज बाह्य-अभ्यंतर स्पष्ट अनुभवाई रह्यो होवा छतां पण व्यक्तपणा प्रति उदासीनपणे प्रद्योतमान छे माटे अव्यक्त छे. शुं कहे छे? पोते पोताथी ज बाह्य एटले पर्याय अने अभ्यंतर एटले द्रव्य-एम द्रव्य अने पर्याय बन्नेने प्रत्यक्षपणे अनुभवे छे. (वेदननी अपेक्षाए प्रत्यक्ष कह्युं छे.) अहीं अनुभवे छे एनो अर्थ जाणे छे अथवा जाणवापणे अनुभवे छे एम थाय छे. आम द्रव्य-पर्यायपणे पोते पोताथी ज प्रत्यक्ष जणाई रह्यो होवा छतां व्यक्तपणा प्रति उदासीनपणे प्रद्योतमान छे. अर्थात् पर्यायना वेदन प्रत्ये उदासीन छे. त्यां पर्यायना वेदनमां न अटक्तां ज्यां ध्रुव वस्तु छे त्यां गुलांट खाई जाय छे. ए वेदननी पर्याय द्रव्य भणी नजर करे छे, द्रव्य तरफ ज वळे छे पण पर्यायमां अटक्ती नथी. बहु सूक्ष्म बोल छे!

पोते पोताथी ज स्पष्ट अनुभवाई रह्यो छे. एटले के राग के निमित्तने लईने अनुभवातो नथी. वळी स्पष्ट अनुभवाई रह्यो छे एटले के ज्ञानमां प्रत्यक्ष अनुभवाई रह्यो छे. ज्ञाननी पर्यायमां ज्ञाननुं अने द्रव्यनुं प्रत्यक्षपणुं छे; बन्ने एकसाथे जणाई रह्या छे. अरे! लोकोने आवुं आकरुं लागे एटले कहे के एकली निश्चयनी वात करे छे अने व्यवहारनो लोप करे छे. पण भाई! व्यवहार छे ए जाणवा माटे छे, आदरवा माटे नथी. तथा व्यवहारथी निश्चय प्रगटे एवुं पण व्यवहारनुं स्वरूप नथी.

पोते पोताथी ज प्रत्यक्ष अनुभवाई रह्यो छे छतां व्यक्त पर्याय प्रत्ये उदासीनपणे प्रद्योतमान छे. अर्थात् व्यक्त पर्यायमां टक्तो नथी. आनंदनुं वेदन पर्यायमां छे पण ते पर्यायमां अटक्तो नथी. बस, उदास, उदास, उदास. पर्यायथी लक्ष छोडीने द्रव्य भणी लक्ष करे छे, द्रव्यमां ज ढळे छे. द्रव्य भणी लक्ष करनार पर्याय प्रगट आनंदना वेदनमां पण