समयसार गाथा-४९ ] [ ७७ लक्ष करती नथी. बीजी रीते कहीए तो एक समयनुं जे आनंदनुं वेदन तेमां पोते ऊभो रहेतो नथी.
हवे उपसंहार करतां कहे छे के-आ प्रमाणे भगवान आत्मामां रस, गंध, रूप, स्पर्श, शब्द, संस्थान अने व्यक्तपणानो अभाव होवा छतां पण स्वसंवेदनना बळथी पोते सदा प्रत्यक्ष होवाथी अनुमानगोचरमात्रपणाना अभावने लीधे जीवने अलिंगग्रहण कहेवामां आवे छे.
अहाहा! शुं कहे छे? भगवान आत्मामां जेम रस, रूप, गंध, स्पर्श, शब्द अने संस्थाननो अभाव छे तेम व्यक्त पर्यायनो पण अभाव छे. आवो होवा छतां वर्तमान पर्यायमां स्व नाम पोताना प्रत्यक्ष वेदनना बळथी-स्वसंवेदनना बळथी आत्मा सदा प्रत्यक्ष छे. पोते तो सदा प्रगट अने प्रत्यक्ष ज छे. प्रवचनसार गाथा १७२मां अलिंग-ग्रहणना छठ्ठा बोलमां लीधुं छे के भगवान आत्मा स्वभावथी जणाय एवो प्रत्यक्ष ज्ञाता छे. आत्मानो स्वभाव ज प्रत्यक्ष थवानो छे. परोक्ष रहेवानो एनो स्वभाव ज नथी. इन्द्रिय, मन के अनुमानज्ञानथी जणाय एवो आत्मानो स्वभाव ज नथी. (आ वात अलिंगग्रहणना पहेला पांच बोलमां लीधी छे).
ज्यां ज्यां ज्ञान त्यां त्यां आत्मा, ज्यां ज्यां ज्ञान नहीं त्यां त्यां आत्मा नहि-एवुं जे अनुमानज्ञान छे ए भेदरूप छे अने भेदरूप छे माटे व्यवहार छे. राग के व्यवहारज्ञाननी जेमां अपेक्षा नथी एवा स्वसंवेदनना बळथी भगवान आत्मा सदा प्रत्यक्ष थतो होवाथी अनुमानगोचरमात्रपणानो आत्मामां अभाव छे. तेथी अनुमानज्ञानरूप व्यवहारनो पण आत्मामां अभाव छे. प्रत्यक्षपूर्वकनुं अनुमान होय तो ते पण व्यवहार छे. एवा अनुमानथी पण आत्मा जणातो नथी एम कहे छे.
समयसार कळशटीकाना कळश ८मां ‘उन्नीयमानम्’ एटले के चेतनालक्षणथी लक्षित थाय छे एटले के अनुमानगोचर पण छे एम लीधुं छे. पण अहीं तो एटलो विकल्प (भेद) पण काढी नाख्यो छे. (अनुभव पूर्वे एवो कोई भेद होय ते जुदी वात छे). सीधो स्वसंवेदनना बळथी प्रत्यक्ष थाय छे एवो ज आत्मानो स्वभाव छे. अहीं प्रत्यक्ष ज्ञान लेवुं छे. ए ज कळश आठमां बीजो पक्ष रजु करतां कह्युं छे के-‘उद्योत–मानम्’-प्रत्यक्ष ज्ञानगोचर छे. आ वात अहीं लेवी छे. वस्तु विचारतां ‘आ ज्ञान ते आत्मा’ एवो अनुमाननो विकल्प ऊठे ते पण जूठो छे. शुद्ध वस्तुमात्र छे, आवो अनुभव सम्यक्त्व छे.
समयसारमां छेल्ले परिशिष्टमां ४७ शक्तिओनुं वर्णन छे. त्यां आत्मामां एक ‘प्रकाश’ नामनी शक्ति कही छे. आ शक्तिना कारणे पोते (आत्मा) पोताथी सीधो