Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 596 of 4199

 

७८ ] [ प्रवचन रत्नाकर भाग-३ जणाय एवो ज एनो स्वभाव छे. ‘स्वयं प्रकाशमान विशद (स्पष्ट) एवा स्वसंवेदनमयी (स्वानुभवमयी) प्रकाश शक्ति.’ अहीं जे स्वसंवेदनप्रत्यक्ष लीधुं छे ए प्रकाशशक्तिनी अपेक्षाए लीधुं छे. आत्माने जाणवामां राग के निमित्तनी अपेक्षा तो नथी पण अनुमानज्ञाननी पण अपेक्षा नथी. आत्मा सीधो पर्यायमां स्वसंवेदनना बळथी प्रत्यक्ष थवाना ज स्वभाववाळो छे.

आनंदना वेदननी अपेक्षाए अहीं प्रत्यक्ष कह्यो छे. अतीन्द्रिय आनंदने आत्मा सीधो वेदे छे. आनंदनुं वेदन प्रत्यक्ष छे एनुं जोर आपीने प्रत्यक्ष कह्युं छे. आत्माना आनंदना स्वादमां श्रुतज्ञानीने अने केवळज्ञानीने कोई फेर नथी; आत्माना गुणो अने आकार जोवामां केवळीने जेम प्रत्यक्ष जणाय तेम श्रुतज्ञानीने न जणाय पण स्वानुभूतिमां आनंदनुं वेदन तो श्रुतज्ञानीने पण प्रत्यक्ष ज छे. श्रुतज्ञानीने जे आनंदनुं वेदन छे ते प्रत्यक्ष छे. ए कोई बीजो थोडो वेदे छे? तेथी श्रुतज्ञाननी अपेक्षाए आत्मा परोक्ष भले होय, पण वेदननी अपेक्षाए प्रत्यक्ष ज छे. स्वसंवेदनना बळथी पोते सदा प्रत्यक्ष छे.

आंधळो साकर खाय अने देखतो मनुष्य खाय. त्यां बन्नेने मीठाशना वेदनमां कांई फरक नथी. आंधळो साकरने प्रत्यक्ष देखतो नथी, पण साकरनी मीठाशना स्वादमां कांई फेर नथी. तेम आत्माना आनंदना स्वादमां श्रुतज्ञानी अने केवळज्ञानीने कांई फरक नथी. केवळज्ञानीने असंख्यातप्रदेशी अनंतगुणनो पिंड आत्मा अने तेना आकारादि साक्षात् प्रत्यक्ष देखाय छे तेम श्रुतज्ञानीने प्रत्यक्ष जणातुं नथी पण वेदननी अपेक्षाए अहीं प्रत्यक्षनुं जोर आप्युं छे. वळी तेमां प्रत्यक्ष थवानो प्रकाश नामनो गुण छे. पोते पोताथी सीधो जणाय एवो आत्मामां प्रकाश नामनो गुण छे. पोते सीधो आनंदने वेदे छे. तेथी वेदननी अपेक्षाए प्रत्यक्ष ज छे एम कह्युं छे.

समयसार कळशटीका, कळश १९मां आवे छे के-‘श्रुतज्ञानथी आत्मस्वरूप विचारतां घणा विकल्पो ऊपजे छे; एक पक्षथी विचारतां आत्मा अनेकरूप छे, बीजा पक्षथी विचारतां आत्मा अभेदरूप छे-आम विचारतां थकां तो अनुभव नथी, तो अनुभव कयां छे? उत्तर आम छे के प्रत्यक्षपणे वस्तुने आस्वादतां थकां अनुभव छे.’

कळश ९३मां पण लीधुं छे के-‘जेटला नय छे तेटला श्रुतज्ञानरूप छे; श्रुतज्ञान परोक्ष छे, केमके सविकल्प छे, अनुभव प्रत्यक्ष छे; केमके निर्विकल्प छे तेथी (सविकल्प) श्रुतज्ञान विना जे निर्विकल्प ज्ञान छे ते प्रत्यक्ष अनुभवे छे. तेथी प्रत्यक्षपणे अनुभवातो थको जे कोई शुद्धस्वरूप आत्मा ते ज ज्ञानपुंज वस्तु छे एम कहेवाय छे.’ आम भगवान आत्मा ज्ञाननी पर्यायमां सीधो प्रत्यक्ष जणाय छे. एमां राग के निमित्तनी तो अपेक्षा नथी पण अनुमानज्ञानथी पण ते जणाय नहि एवो ते स्वानुभव प्रत्यक्ष छे. आवा अर्थमां अहीं प्रत्यक्ष कह्यो छे.