Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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समयसार गाथा-४९ ] [ ७९

आमां (कळश ९३मां) श्रुतज्ञान परोक्ष कीधुं. खरेखर तो श्रुतज्ञाननो अनुभव प्रत्यक्ष छे. गाथा १४४ नी टीकामां लीधुं छे के-इन्द्रियो अने मनद्वारा प्रवर्तती बुद्धिओने मर्यादामां लावीने मतिज्ञानतत्त्वने आत्मसन्मुख करीने, तथा अनेक विकल्पो मटाडीने श्रुतज्ञानतत्त्वने पण आत्मसन्मुख करीने, अत्यंत विकल्परहित थईने निज परमात्मस्वरूप समयसारने अनुभवे छे ते वखते ज आत्मा सम्यक्पणे देखाय छे. आमां श्रुतज्ञान वडे अनुभव थवो कह्यो छे. ज्यां जे अपेक्षा होय ते यथार्थ समजवी जोईए. श्रुतज्ञानना विकल्पोमां आत्मा परोक्ष छे पण अनुभवमां, वेदनमां प्रत्यक्ष छे. केवळज्ञान अपेक्षा चारेय ज्ञानने परोक्ष पण कह्यां छे.

वळी रहस्यपूर्ण चिठ्ठीमां ‘आगम-अनुमानादिक परोक्षज्ञान वडे आत्मानो अनुभव होय छे’ एम लीधुं छे. त्यां निर्विकल्प अनुभव पूर्वे जैनागममां जेवुं आत्मानुं स्वरूप कह्युं छे तेवुं जाणी अनुमान वडे वस्तुनो निश्चय करे छे-अर्थात् एवो निर्णय होय छे एम बताववुं छे; परंतु तेनाथी अनुभव थाय छे एम कहेवुं नथी. भाई आत्मानुं स्वरूप अति सूक्ष्म छे. ज्यां जे विवक्षा होय ते बराबर जाणवी जोईए. अहीं तो एम कहे छे के वस्तु तो स्वसंवेदनना बळथी सदा प्रत्यक्ष छे अने एमां अनुमानगोचर-मात्रपणानो अभाव होवाथी जीवने अलिंगग्रहण कहेवामां आवे छे.

हवे आगळ कहे छे के-पोताना अनुभवमां आवता चेतनागुण वडे सदाय अंतरंगमां प्रकाशमान छे तेथी जीव चेतनागुणवाळो छे. अत्यार सुधी आत्मामां आ नथी, आ नथी एम कह्युं हतुं. पण हवे तेमां ‘छे’ शुं एनी वात करे छे. एकलुं देखवुं-जाणवुं जेनो स्वभाव छे एवा चेतनागुणवाळो भगवान आत्मा छे. आत्मा चेतना वडे अनुभवाय छे एटले राग वडे अनुभवातो नथी ए वात छे, परंतु एवा भेद वडे अनुभवाय छे एम कहेवुं नथी. अंतर्मुख थयेली पर्याय एम जाणे छे के आ चैतन्यमय भगवान आत्मा हुं, बस. भगवान आत्मा स्पर्श, रस, गंध, वर्ण, व्यक्तपणुं आदिरूपे नथी पण चैतन्यमय, चेतनागुणवाळो छे.

हवे कहे छे-केवो छे चेतनागुण? जे समस्त विप्रतिप्रत्तिओनो (जीवने अन्य प्रकारे मानवारूप झघडाओनो) नाश करनार छे. जीव रागवाळो छे, पुण्यवाळो छे, व्यवहारवाळो छे, कर्मवाळो छे, शरीरवाळो छे इत्यादि अनेक प्रकारे अन्य मानवारूप झघडाओनो नाश करनार छे. कषायनी मंदता होय तो जणाय, छेल्लो शुभभाव तो होय छे ने? पहेलां विकल्प तो आवे ने? इत्यादि अनेक प्रकारनी विपरीत मान्यताओनो निषेध करनार छे. वळी जेणे पोतानुं सर्वस्व भेदज्ञानी जीवोने सोंपी दीधुं छे एवो छे. एटले के परथी भिन्न पडी स्वनो अनुभव जेणे कर्यो तेने पूरेपूरो ख्याल आवी गयो छे के मारो आत्मा सीधो मारा ज्ञानथी जणाय एवो छे, पण देव-गुरु-शास्त्रथी के दिव्यध्वनिथी जणाय एम नथी.