८० ] [ प्रवचन रत्नाकर भाग-३ सम्यक्त्वीने ज ए खबर छे के पोतानी रागरहित वस्तु पोताना ज्ञानभावथी जणाय छे, रागथी नहि.
आत्मा ज्ञान’ लक्षण द्वारा जणाय छे. ज्ञान लक्षण कहो के उपयोग कहो, ते द्वारा आत्मा जणाय छे. उपयोगना बे प्रकार छे. (१) उपयोग एटले जाणवुं-देखवुं एवो त्रिकाळी गुण अने (२) उपयोग एटले आ जाणवुं-देखवुं त्रिकाळ छे एम निर्णय करनारी पर्याय. जाणनार पर्याय व्यक्त छे अने प्रसिद्ध छे. जाणवुं, जाणवुं, जाणवुं ए लक्षण प्रसिद्ध छे. तेनाथी प्रसाध्यमान आत्माने साधी शकाय छे, जाणी शकाय छे.
वर्तमान ज्ञाननी दशाने अंतरमां वाळतां आत्मा जणाय ए टूंकी अने टच वात छे. ‘परथी खस, स्वमां वस, टूंकुं टच, एटलुं बस.’ एने विस्तारथी समजावे छे के परथी खसवुं एटले शुं? स्वमां वसवुं एटले शुं? अने स्ववस्तु शुं? ज्ञानस्वभावी वस्तु आत्मानुं ज्ञान अने अनुभव केम थाय ए मात्र भेदज्ञानीओ ज यथार्थ जाणे छे.
भाई! परिभ्रमण करीने ८४ लाख योनिमां अनंतवार अवतार कर्या. अहीं कोई आकरो रोग शरीरमां आवे अने थोडो काळ एमां जाय तो राड नाखे छे. ए रोगनी पीडा, नरकनी प्रतिकूळताथी तो अनंतमां भागे छे. परमाधामी (एक जातना देवो) नरकमां शरीरना झीणा झीणा कटका करी नाखे छे अने जेम विखरायेलो पारो भेगो थई जाय तेम ते कटका पाछा भेगा थई जाय छे. आवी नरकनी पीडामां तुं अनंतवार गयो छे, भाई! तारी स्ववस्तुना भान विना अर्थात् सम्यग्दर्शन विना आवां अनंत दुःखो तें भोगव्यां छे. माटे हवे तो जेवी वस्तुनी स्थिति छे तेवो एकवार अनुभव कर. अहा! जन्म-मरणना दुःखनो अंत लाववानो एक आ ज उपाय छे.
वस्तुनुं स्वरूप जेवुं छे तेवुं संतो जाहेर करे छे. कोईने गमे के न गमे तेनी साथे शुं संबंध? कोई निश्चयाभासी कहे के एकान्ती कहे. आ तो वस्तुना घरनी, निज घरनी वात छे. नियमसारमां आवे छे के कोई आवा सुंदर मार्गनी निंदा करे तेथी हे भाई! तुं आवा उत्तम लोकोत्तर मार्ग प्रत्ये अभक्ति न करीश, भक्ति ज करजे.
वळी, केवो छे चेतनागुण? जे समस्त लोकालोकने ग्रासीभूत करी ले छे. अहा! केवळज्ञाननी पर्यायनुं एटलुं सामर्थ्य छे के ते लोकालोकनी पर्यायने कोळियो करी जाय छे. अरे! एथी अनंतगणुं होय तोपण जाणे एवुं एनुं अचिंत्य सामर्थ्य छे. श्रुतज्ञाननी पर्यायमां पण आटली ताकात छे; फक्त प्रत्यक्ष, परोक्षनो भेद छे. एक समयनी व्यक्त पर्यायमां पर्यायनुं अने द्रव्यनुं बन्नेनुं ज्ञान थाय छे. एक समयनी पर्यायना ज्ञानमां छ द्रव्यनुं ज्ञान आवी जाय छे. आ वात छेल्ले १४ कळशो लीधा छे तेमां आवे छे.
एवा लोकालोकने ग्रासीभूत करीने अत्यंत तृप्ति वडे ठरी गयो छे. अहाहा! अनंत