समयसार गाथा-४९ ] [ ८१ आनंदनो नाथ अंदरथी जाग्यो ते आनंदनो अनुभव करे छे. जेमां प्रतिसमय आनंद प्रगटे छे ते आनंदनो भोगवनार आत्मा अत्यंत तृप्त थई गयो छे.
द्रष्टिमां स्वभावनी अपेक्षाए रागनो भोगवनार ज्ञानी नथी. परंतु ज्ञाननी अपेक्षाए जुओ तो धर्मी साधक आनंदनो भोक्ता छे अने रागनो पण भोक्ता छे. राग भोगववा योग्य छे एम एने बुद्धि नथी, पण वेदनमां छे ए अपेक्षाए भोक्ता कह्यो छे.
भाई! आ अवसरमां पण तुं आ तत्त्वने नहि समजे तो कयारे समजीश?
जेम ब्राह्मण लचपच लाडु खाईने (तृप्त थयो होय तेम) मलपतो चाले तेम धर्मी आनंदमां मलपतो चाले छे. धर्मी अत्यंत स्वरूपसौख्य वडे तृप्त तृप्त होवाने लीधे एवो ठरी गयो छे के स्वरूपमांथी बहार नीकळवानो अनुद्यमी होय तेम सर्वकाळे किंचित्मात्र पण चलायमान थतो नथी. पूर्ण दशा थवाथी सर्वकाळे किंचित्मात्र पण चलित थतो नथी. आवी दशाने पूर्ण दशा अर्थात् अनुभवनुं फळ कहे छे. ए रीते सदाय जरापण नहि चळतुं अन्यद्रव्यथी असाधारणपणुं होवाथी चेतनागुण स्वभावभूत छे.
धर्मी जीव अंदरमां एवो तृप्त-तृप्त ठरी गयो छे के हवे पछीनो काळ आत्म-तत्त्वना आनंदना भोगवटामां ज वहेशे. अहो! समयसारमां तो चौद ब्रह्मांडना भावो भर्या छे. एवा काळे अने एवी शैलीए ए लखाई गयुं छे के एमां कांई अधूराश रही नथी.
-आवो चैतन्यरूप परमार्थस्वरूप जीव छे. परमार्थ एटले परा कहेतां उत्तम अने मा एटले लक्ष्मी अर्थ एटले पदार्थ-उत्तम लक्ष्मीवाळो पदार्थ. चैतन्यनी उत्तम लक्ष्मीवाळो जीव पदार्थ छे-ए परमार्थ छे. जेनो प्रकाश निर्मळ छे एवो आ भगवान आ लोकमां एक टंकोत्कीर्ण भिन्न ज्योतिरूप बिराजमान छे. जाणे घडतर करीने अंदरथी काढयुं होय एवो एकरूप शाश्वत तथा भिन्न चैतन्यज्योतिरूप भगवान बिराजमान छे तेने आत्मा कहेवामां आवे छे.
हवे आ ज अर्थनुं कळशरूप काव्य कही एवा आत्माना अनुभवनी प्रेरणा करे छेः-
‘चित्शक्तिरिक्तम् सकलम् अपि अह्नाय विहाय’-शुं कहे छे? चित्शक्तिथी रहित अन्य सकळ भावोने मूळथी छोडीनेः-जुओ, आत्मा ज्ञानसामर्थ्यरूप छे. अने आ शुभाशुभ भावो चित्शक्तिथी रिक्त कहेतां खाली छे, भिन्न छे. चाहे तो तीर्थंकर नामकर्म बांधनारो भाव हो. पंचमहाव्रतनो विकल्प हो के गुणगुणीना भेदनो विकल्प हो-ए बधा चैतन्यशक्तिथी खाली अनेरा भावो छे. ए सर्व भावोने मूळमांथी तुं छोड एम कहे छे.
‘च स्फुटतरम् स्वं चित्शक्तिमात्रम् अवगाह्य’-अने प्रगटपणे पोताना चित्शक्तिमात्र भावनुं अवगाहन करीनेः-पोते प्रगट ज्ञानस्वभावमात्र वस्तु छे. एमां डूबकी मार,