८२ ] [ प्रवचन रत्नाकर भाग-३ एमां प्रवेश कर, अवगाहन कर. जेम समुद्रमां अवगाहन करे छे एम आ चैतन्यमात्र समुद्रमां अवगाहन कर. वर्तमान पर्याय द्वारा त्रिकाळी ज्ञानस्वभावी शुद्ध चैतन्यसिंधुमां प्रवेश कर. पुण्य-पापना भावनुं अवगाहन तो अनादिनुं छे, पण ए तो मिथ्याभाव छे, चैतन्यथी खाली छे.
अहा! केवी टूंकी अने सारभूत वात! जे भावथी बंधन थाय ते सर्व विकल्पो अचेतन छे. तेथी चैतन्यशक्तिनो जेमां अभाव छे एवा अनेक प्रकारना अचेतन शुभाशुभ भावोनुं लक्ष छोडी दे अने सदा एकरूप शुद्ध चित्शक्तिमात्र भावने ग्रहण कर.
केवा छे आत्मा? ‘विश्वस्य उपरि चारु चरन्तम् इमम् परम् आत्मानम्’-समस्त पदार्थसमूहरूप लोकना उपर सुंदर रीते प्रवर्ततो एवो आ एक, केवळ, अविनाशी आत्मा छे तेनेः-आत्मा लोकना उपर सुंदर रीते प्रवर्ततो पदार्थ छे. विकल्पथी मांडीने आखा जगतथी ए जुदो सर्वोत्कृष्ट पदार्थ छे. सुंदर रीते प्रवर्ततो एटले के अतीन्द्रिय आनंदस्वरूपे प्रवर्ततो पदार्थ छे. पुण्य-पापमां प्रवर्तन ए तो दुःखरूप प्रवर्तन छे. आत्मा तो अतीन्द्रिय आनंदस्वरूपे प्रवर्ततो सर्वोत्कृष्ट पदार्थ छे.
भगवान आत्मा चारित्रनी अपेक्षाए वीतरागस्वभावी छे, ज्ञाननी अपेक्षाए ज्ञान- स्वभावी छे अने आनंदनी अपेक्षाए आनंदस्वरूप छे. एवा ज्ञान, आनंद अने वीतरागता इत्यादि अनेक गुण-स्वभावोथी भरेलो अखंड एकरूप चैतन्य भगवान छे. अहीं कहे छे के पुण्य-पाप आदि सघळा अचेतन भावोनुं लक्ष छोडी प्रगट चिन्मात्र एक आत्मामां अवगाहन कर. अनुभव थवानी आ ज पद्धति अने रीत छे. आकरी लागे के न लागे, मार्ग तो आ छे, भाई! बीजो कोई मार्ग नथी.
‘आत्मा (आत्मानम्) आत्मनि साक्षात् कलयतु’ भव्यात्मा एवा एक केवळ अविनाशी आत्मानो आत्मामां ज अभ्यास करो, साक्षात् अनुभव करो. अहाहा! एकलुं माखण छे. अनादिथी आ चैतन्यप्रकाशनो पुंज शाश्वतस्वरूप भगवान आत्मा पुण्य-पापना व्यवहार भावोमां मुंझाई गयो छे, झकडाई गयो छे. तेने अहीं कहे छे के ए सर्व व्यवहार भावोनुं लक्ष छोडी चित्शक्तिस्वरूप भगवान आत्मानो आत्मामां ज साक्षात् अनुभव कर.
अहीं चित्शक्तिस्वरूप आत्मा एम भेदथी कथन कर्युं त्यां वस्तुमां कोई भेद न समजवो. पण शुं थाय? बीजा तो कोई उपाय नथी. बहु बुद्धिवाळो होय तोपण समजाववाना काळे भेद पाडीने ज समजाववुं पडे. ‘दर्शन-ज्ञान-चारित्रने प्राप्त होय ते आत्मा’, अथवा बहु टूकुं कहे तो ‘ज्ञान ते आत्मा’-एम भेद पाडीने ज कथन करे. भेद पाडया विना समजावे शी रीते? श्री समयसार कळशटीका, कळश पमां आ वात लीधी छे, ‘जीववस्तु निर्विकल्प छे. ते तो ज्ञानगोचर छे. ते ज जीववस्तुने कहेवा मागे