समयसार गाथा-४९ ] [ ८३ त्यारे एम ज कहेवामां आवे छे के जेना गुण दर्शन-ज्ञान-चारित्र ते जीव. जो कोई बहु साधिक होय (बुद्धिवाळो होय) तोपण आम ज कहेवुं पडे. आटलुं कहेवानुं नाम व्यवहार छे.’ पण ए व्यवहारथी जणाव्युं छे. कहेनारे के सांभळनारे व्यवहार अनुसरवा लायक नथी. भेद पाडीने समजाववानो व्यवहार छे, पण ते व्यवहारनुं अनुसरण न करवुं, वस्तु त्रिकाळ छे एनुं अनुसरण करवुं. समयसार गाथा ८नी टीकामां आनी स्पष्टता करेली छे.
जेमां भव अने भवना भावनो अभाव छे एवो भगवान आत्मा शुद्ध चेतनासिंधु छे. बनारसीदासे कह्युं छे ने केः-
मोहकर्म मम नांहि नांहि भ्रमकूप है.
शुद्ध चेतनासिंधु हमारौ रूप है.’
आ रागादि भाव चाहे शुभराग होय तोपण ते भ्रमनो कूवो छे, भवनो कूवो छे. जेनो बेहद अपरिमित ज्ञानस्वभाव छे एवो भगवान आत्मा शुद्ध चैतन्यनो दरियो छे. एवा चैतन्यसमुद्रमां अवगाहन कर, एनी सन्मुख थई एमां मग्न थई जा. तेथी आखा विश्वना भावोथी भिन्न एवा आनंदमां तारुं प्रवर्तन थशे. आनुं नाम धर्म छे.
कोई एम कहे के आनुं कांई साधन खरुं के नहि? श्री पंचास्तिकायमां व्यवहार निश्चयनुं साधन छे एम आवे छे ने? भाई! ए तो निमित्त केवुं होय छे तेनी वात करी छे. ए व्यवहार कांई साधन नथी, निश्चय ज साधन छे. यथार्थ साधन तो एक ज छे; पण साथे राग केवी जातनो होय छे ते देखाडवा व्यवहार उपर साधननो उपचारथी आरोप कर्यो छे.
अहीं कह्युं छे ने के आत्मा आत्मानो आत्मामां ज अभ्यास करो. तारा निर्मळ परिणमनमां एक आत्मानो साक्षात् अनुभव करो. आ अनुभव ए रत्नत्रयरूप धर्म छे, मोक्षमार्ग छे. आमां व्यवहारनो निषेध आवी गयो. कह्युं ने के जे व्यवहारनो राग छे ते चित्शक्तिथी रिक्त एटले खाली छे तेथी तेने छोड, अने चैतन्यस्वभावना सामर्थ्यनो दरियो भगवान आत्मा छे एमां प्रवेश कर, पर्यायने एक शुद्ध चैतन्यसिंधुमां निमग्न कर. मार्ग तो आ एक ज छे. ‘एक होय त्रण काळमां परमारथनो पंथ.’
आ सम्यक् एकान्त छे. निश्चयथी पण थाय अने व्यवहारथी पण थाय एम मानवुं ए तो मिथ्या अनेकान्त छे.