८४ ] [ प्रवचन रत्नाकर भाग-३
आ आत्मा परमार्थे समस्त अन्यभावोथी रहित चैतन्यशक्तिमात्र छे. १४८ कर्मनी प्रकृति जे भावोथी बंधाय ते बधा भावो अचेतन छे. चेतनना भावथी, चैतन्यना निर्मळ परिणमनथी बंधन न पडे. बंधन तो चैतन्यथी खाली अचेतनभावथी पडे. अचेतन-भावथी अचेतन प्रकृतिनुं बंधन थाय.
वळी कोई एम कहे छे के जे भावथी पुण्य बंधाय ते पुण्यभावने तमे अधर्म न कहो? अरे भाई! पुण्यभाव आत्माना आनंदना प्रवर्तनथी विरुद्ध भाव छे. आत्माना आनंदनुं प्रवर्तन धर्म छे तो पुण्यभाव अधर्म छे एम सहेजे तेमां आवी जाय छे.
वस्तु नित्य, ध्रुव, आनंदनो नाथ भगवान आत्मा चिन्मात्र छे. तेना अनुभवनो अभ्यास करो एम उपदेश छे. अबुध जीवने समजाववा माटे व्यवहार द्वारा समजाव्युं छे. पण ए व्यवहारने ज जे पकडी राखे ए उपदेश सांभळवाने लायक नथी. एवो जीव भगवाननी देशनाने लायक नथी एम श्री पुरुषार्थसिद्धयुपायमां कह्युं छे.
हवे चित्शक्तिथी अन्य जे भावो छे ते बधा पुद्गलद्रव्यसंबंधी छे एवी आगळनी गाथानी सूचनिकारूपे श्लोक कहे छेः-
‘चित्शक्ति–व्याप्त–सर्वस्व–सारः अयम् जीवः इयान्’ चित्शक्तिथी व्याप्त जेनो सर्वस्वसार छे एवो आ जीव एटलो ज मात्र छे. शुं कहे छे? आ ज्ञाननुं दळ, आनंदनुं दळ, शान्तिनुं दळ एम अनंत गुणना दळथी मंडित चित्शक्ति ज जेनुं सर्वस्व छे ते जीव छे. एटलो ज मात्र आत्मा छे. आ चैतन्यशक्तिथी प्रसरवापणुं जेनुं सर्वस्व छे एटलो ज आत्मा छे.
‘अतः अतिरिक्ताः अमी भावाः सर्वे अपि पौद्गलिकाः’ आ चित्शक्तिथी शून्य जे आ भावो छे ते बधाय पुद्गलजन्य छे, पुद्गलना ज छे. दया, दान, व्रत, तप, भक्ति, पूजा इत्यादि विकल्प पुद्गलना ज छे. चाहे व्यवहारत्नत्रयना भाव हो के तीर्थंकर नामकर्म जे वडे बंधाय ए भाव हो ए बधा भाव चित्शक्तिथी खाली छे तेथी पुद्गलना ज छे, पुद्गल संबंधी छे.
प्रश्नः– रागादि भावोने पुद्गल केम कह्या?
उत्तरः– आत्मानी चैतन्यजातिना ए परिणाम नथी. रागादिने उत्पन्न करे एवो आत्मामां कोई गुण-स्वभाव नथी. तेथी ए भावो आत्माना नथी. वळी पर्यायमां उत्पन्न थता ए भावो पुद्गलना आश्रये उत्पन्न थाय छे. तेथी ए बधा पुद्गलना ज छे एम कह्युं छे. जो आत्माना होय तो ते आत्माथी भिन्न पडे नहीं.