समयसार गाथा-४९ ] [ ८प
चित्शक्तिथी शून्य आ बधा भावो पुद्गलना ज छे. पर्याय आत्मा तरफ ढळवाने बदले पुद्गल तरफ ढळी तेथी उत्पन्न थयेला ए भावो पुद्गलसंबंधी छे. कयांक एम आवे के रागादि पोताना अशुद्ध उपादानथी थाय छे, परने लईने थता नथी; तेथी पर्यायमां उत्पन्न थवानी ते क्षण छे तेथी ए उत्पन्न थया छे. त्यां अशुद्ध उपादाननी स्वतंत्रता बताववानो हेतु छे. ज्यारे अहीं एने पुद्गलजन्य कह्या छे तेमां शुद्ध उपादानमां ए नथी तथा शुद्ध उपादानना कार्यभूत ए नथी एम बताववानो हेतु छे.
भाई! आ तारा परम हितनी वात छे. त्यारे एमांथी कोई एम पूछे के-उपदेशमात्रथी लाभ न थाय एम आप कहो छो अने हितनो उपदेश तो आप आपो छो?
समाधानः– भाई, वाणीना काळे वाणी नीकळे छे अने सांभळनारने पण तेनी योग्यताना काळे एवुं निमित्त होय छे. पण सांभळे छे तेथी तथा संभळावनार निमित्त छे तेथी ज्ञान थाय छे एम नथी. त्यां तो ज्ञाननी पर्याय उत्पन्न थवानी ए जन्मक्षण ज छे. श्री प्रवचनसारनी १०२ मी गाथामां जन्मक्षणनी वात आवे छे. स्वसन्मुख थईने निर्मळ पर्याय थाय ते काळे तेवी निर्मळता थवानो स्वकाळ ज छे, अने निमित्तादि पण एम ज छे. छतां राग के निमित्त छे माटे निर्मळता थाय छे एम नथी. निर्मळ पर्याय थवानी योग्यताना काळे यथार्थ उपदेशनुं निमित्त होय अने उपदेश सांभळवानो विकल्प पण होय पण तेथी ए निमित्त के विकल्प ज्ञान करी दे छे एम नथी.
निमित्तादि, वस्तुनी जन्मक्षण नीपजावनार नथी. जुओ, वस्तुनी जे जन्मक्षण छे ते जन्मथी व्याप्त छे, उत्पाद उत्पादथी व्याप्त छे, व्यय व्ययथी व्याप्त छे अने ध्रुव ध्रुवथी व्याप्त छे. प्रवचनसारमां आ वात लीधी छे. आ प्रवचनसार तो दिव्यध्वनिनो सार छे. भगवान एम कहे छे के-तुं अमारी दिव्यध्वनि सांभळे छे एथी तने ज्ञाननी पर्याय उत्पन्न थाय छे एम नथी, परंतु ज्ञाननी पर्यायनो जन्मक्षण छे तेथी उत्पन्न थाय छे.
श्री अमृतचंद्राचार्यदेवे पण छेल्ले कह्युं छे के-हे जीवो! हुं समजावनार छुं अने तमे समजनार छो एवा मोहथी न नाचो. वाणी अमे करी छे एम न मानो. अमे तो ज्ञानमां छीए; तो वाणीने अमो केम करीए? ज्ञानमां ज हुं छुं, वाणीमां हुं आव्यो ज नथी तेथी हुं समजावनार छुं एम छे नहि. अने वाणीथी तने समजायुं एम पण नथी. आ तो दुनियाथी तद्न जुदी वात छे, भाई