* जीव–अजीव अधिकार *
गाथा प०–पप
जीवस्स णत्थि वण्णो ण वि गंधो ण वि रसो ण वि य फासो।
ण वि रूवं ण सरीरं ण वि संठाणं ण संहणणं।। ५० ।।
ण वि रूवं ण सरीरं ण वि संठाणं ण संहणणं।। ५० ।।
जीवस्स णत्थि रागो ण वि दोसो णेव विज्जदे मोहो।
णो पच्चया ण कम्मं णोकम्मं चावि से णत्थि।। ५१ ।।
णो पच्चया ण कम्मं णोकम्मं चावि से णत्थि।। ५१ ।।
जीवस्स णत्थि वग्गो ण वग्गणा णेव फड्ढया केई।
णो अज्झप्पट्ठाणा णेव य अणुभागठाणाणि।। ५२ ।।
णो अज्झप्पट्ठाणा णेव य अणुभागठाणाणि।। ५२ ।।
जीवस्स णत्थि केई जोयट्ठाणा ण बंधठाणा वा।
णेव य उदयट्ठाणा ण मग्गणट्ठाणया केई।। ५३ ।।
णेव य उदयट्ठाणा ण मग्गणट्ठाणया केई।। ५३ ।।
णो ठिदिबंधट्ठाणा जीवस्स ण संकिलेसठाणा वा।
णेव विसोहिट्ठाणा णो संजमलद्धिठाणा वा।। ५४ ।।
णेव विसोहिट्ठाणा णो संजमलद्धिठाणा वा।। ५४ ।।
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एवा ए भावोनुं व्याख्यान छ गाथाओमां करे छेः-
नथी वर्ण जीवने, गंध नहि, नहि स्पर्श, रस जीवने नहीं,
नहि रूप के न शरीर, नहि संस्थान, संहनने नहि; प०.
नहि रूप के न शरीर, नहि संस्थान, संहनने नहि; प०.
नथी राग जीवने, द्वेष नहि, वळी मोह जीवने छे नहीं,
नहि प्रत्ययो, नहि कर्म के नोकर्म पण जीवने नहीं; प१.
नहि प्रत्ययो, नहि कर्म के नोकर्म पण जीवने नहीं; प१.
नथी वर्ग जीवने, वर्गणा नहि, स्पर्धको कंई छे नहीं,
अध्यात्मस्थान न जीवने, अनुभागस्थानो पण नहीं; प२.
अध्यात्मस्थान न जीवने, अनुभागस्थानो पण नहीं; प२.
जीवने नथी कंई योगस्थानो, बंधस्थानो छे नहीं,
नहि उद्रयस्थानो जीवने, को मार्गणास्थानो नहीं; प३.
नहि उद्रयस्थानो जीवने, को मार्गणास्थानो नहीं; प३.
स्थितिबंधस्थान न जीवने, संकलेशस्थानो पण नहीं,
स्थानो विशुद्धि तणां न, संयमलब्धिनां स्थानो नहीं; प४.
स्थानो विशुद्धि तणां न, संयमलब्धिनां स्थानो नहीं; प४.