समयसार गाथा प०-पप ] [ ९१
जे काळो, लीलो, पीळो, रातो अथवा धोळो वर्ण छे ते बधोय जीवने नथी कारण के ते पुद्गलद्रव्यना परिणाममय होवाथी अनुभूतिथी भिन्न छे. काळो, लीलो, पीळो, इत्यादि वर्ण छे ते रंग गुणनी पर्यायो छे अने तेथी ते पुद्गलद्रव्यना परिणाममय छे. भाषा जुओ. ‘पुद्गलना परिणाम’ एम न कहेतां ‘पुद्गलद्रव्यना परिणाममय’ एम कह्युं छे. रंगगुणनी ए सघळी पर्यायो पुद्गलद्रव्यना परिणाममय होवाथी (पोतानी) अनुभूतिथी भिन्न छे. अहीं जीवद्रव्यथी भिन्न न कहेतां, अनुभूति के जे पर्याय छे तेनाथी भिन्न कह्युं छे. आशय एम छे के चैतन्यस्वभावी निज आत्मानो अनुभव थतां, अनुभूतिमां आ रंगनी पांचेय पर्यायोथी हुं भिन्न छुं एवुं ज्ञान थाय छे. पर्याय स्वद्रव्य तरफ वळतां जे अनुभूति थाय ते अनुभूतिथी आ रंगनी पांचे पर्यायो भिन्न रही जाय छे. ७३मी गाथामां ‘सर्व कारकोना समूहनी प्रक्रियाथी पार ऊतरेली जे निर्मळ अनुभूति’-एम अनुभूतिनुं व्याख्यान छे ते त्रिकाळी शुद्ध अनुभूतिस्वरूप भगवान आत्मा संबंधी छे. ते बीजी वात छे. अहीं तो एम लेवुं छे के परथी खसीने स्वद्रव्यमां ढळतां जे स्वानुभूति थाय छे ते स्वानुभूतिथी रंगनी पांचेय पर्यायो भिन्न छे.
२. जे सुरभि अथवा दुरभि गंध छे ते बधीय जीवने नथी. ‘समयसार नाटक’मां आवे छे के मुनिनो श्वास सुगंधमय होय छे. जेमने घणी निर्मळता प्रगटी छे अने जेओ अतीन्द्रिय आनंदनी मोजमां पडया छे तेओ कोगळा न करे तोपण दांत पीळा थता नथी. निर्मळतानी दशामां मुनिने श्वासमां पण सुगंध आवे छे. अहाहा! भगवान निर्मळानंद प्रभु ज्यां जागीने अंतरनो पटारो (निधि) खोले छे अने अंदर जुए छे त्यां पर्यायमां अतीन्द्रिय आनंद आवे छे अने श्वासमां सुगंध आवे छे. छतां ते सुगंधथी आत्मा (मुनि) भिन्न छे. कारण के पुद्गलद्रव्यना परिणाममय होवाथी सुरभि अथवा दुरभि जे गंधनी पर्याय छे ते अनुभूतिथी भिन्न छे. एटले के ज्यारे स्वरूपनो अनुभव थाय छे त्यारे ते गंधथी भिन्न पडे छे. भिन्न छे एम कयारे कहेवाय? के ज्यारे गंधथी खसीने आत्मानी अनुभूतिमां आवे त्यारे भिन्न छे एम यथार्थपणे कहेवाय.
३. जे कडवो, कषायलो, तीखो, खाटो अथवा मीठो रस छे ते बधोय जीवने नथी कारण के ते पुद्गलद्रव्यना परिणाममय होवाथी अनुभूतिथी भिन्न छे आत्मानी अनुभूतिथी पांचेय रस-पर्याय भिन्न छे.
४. तेवी रीते जे चीकणो, लूखो, शीत, उष्ण, भारे, हलको, कोमळ अथवा कठोर स्पर्श छे ते बधोय जीवने नथी कारण के ते पुद्गलद्रव्यना परिणाममय होवाथी अनुभूतिथी भिन्न छे.
प. हवे पांचमा बोलमां उपरना चारेय बोलने भेगा करीने कहे छे के-जे