९२ ] [ प्रवचन रत्नाकर भाग-३ स्पर्शादि सामान्यपरिणाममात्र रूप छे ते जीवने नथी कारण के ते पुद्गलद्रव्यना परिणाममय होवाथी अनुभूतिथी भिन्न छे.
६. जे औदारिक, वैक्रियक, आहारक, तैजस अथवा कार्मण शरीर छे ते बधुंय जीवने नथी. जुओ, कार्मण शरीर पण जीवने नथी, जीवमां नथी कारण के ते जडना परिणाम होवाथी भिन्न स्वतंत्र छे. आत्माने अने तेने निमित्त-नैमित्तिक संबंध पण अहीं कहेवामां आव्यो नथी. अहीं एवी शैली लीधी छे के पुद्गलना परिणामने आत्मद्रव्यथी भिन्न न कहेतां अनुभूतिथी भिन्न कह्या छे. जेणे परथी भिन्न पडीने अनुभूति वडे आत्माने जाण्यो छे तेने ते सर्व पर छे. संस्कृत टीकामां ‘पोतानी अनुभूति’ तेवो पाठ नथी. पण पंडित श्री जयचंदजीए ‘पोतानी अनुभूति’ एम लीधेल छे तेथी अहीं ‘पोतानी’ शब्द कौंसमां लखेल छे. अहा! आत्मा अखंड निर्मळानंदस्वरूप वस्तु छे अने तेनी निर्मळ दशा ते अनुभूति छे. परथी भिन्न पडीने आत्मसन्मुख थई आत्माने जाणतां अनुभूतिनी निर्मळ दशा प्रगट थाय छे. ते अनुभूतिथी कार्मणशरीर आदि भिन्न छे एम अहीं कहे छे.
पंचाध्यायीमां (नयाभासना प्रकरणमां) एवो प्रश्न उठाव्यो छे के शरीर अने आत्माने र्क्ताकर्म संबंध तो नथी, परंतु निमित-नैमित्तिक संबंध तो छे ने? एना उत्तररूपे त्यां (पद्य प७१मां) कह्युं छे के द्रव्य स्वयं स्वतः परिणमनशील छे तो निमित्तपणानुं शुं काम छे? जुओ भाई, शरीर पोताना कारणे परिणमे छे अने आत्मा पण पोताना कारणे परिणमे छे. पोतानी मेळे परिणमवानो ते दरेकनो स्वभाव छे. द्रव्य स्वतः परिणमनशील छे एम त्यां लीधुं छे. त्यारे कोई कहे के-
प्रश्नः– कोई वखते उपादानथी थाय अने कोई वखते निमित्तथी थाय एम स्याद्वाद करो ने?
उत्तरः– भाई, कार्य हंमेशा निज उपादानथी ज थाय अने कदीय निमित्तथी न थाय ए स्याद्वाद छे. निमित्त तो पर वस्तु छे. तेनुं परिणमन तेने लईने अने स्वनुं परिणमन स्वने लईने छे. तेमां निमित्तनुं शुं काम छे? त्यारे ते कहे छे के शरीर चाले छे तेमां आत्मानुं निमित्त तो छे ने? भाई, निमित्त तो छे, पण निमित्त छे एनो अर्थ शुं? शुं निमित्त छे माटे शरीर चाले छे, परिणमे छे? तथा आत्मानी अनुभूतिनुं परिणमन, शुं शरीर छे तेथी थाय छे? आ जे आत्मानुभूति थई छे ते शुं कार्मणशरीरना उद्रयना अभावने कारणे थई छे-एम छे? ना, एम छे ज नहि. (दरेकनुं परिणमन स्वतंत्र छे) बनारसीदासे पण कह्युं छेः-
ज्यां पोतानुं बळ (उपादान शक्ति) छे त्यां निमित्त शुं करे? स्व अने परनुं