अहीं आ सम्यक्दर्शन-ज्ञान-चारित्रनी वात नथी. आ तो द्रव्य-गुण-पर्यायस्वरूप आखो जीव पदार्थ केवो छे ते सिद्ध कर्युं छे. पछी जीवनुं स्वसमय-परसमयरूप परिणमन स्पष्ट कर्युं छे.
जीव नामना पदार्थनुं प्रथम सात बोलथी वर्णन कर्युं छे.
(१) जीव पदार्थ उत्पाद-व्यय-ध्रौव्यमयी सत्तास्वरूप छे. टीकामां उत्पाद-व्यय-
थाय छे. अनादिथी जीव सत्तारूप पदार्थ छे.
(२) दर्शन-ज्ञानमयी चेतनास्वरूप छे. दर्शन-ज्ञानना परिणमननी वात लीधी छे. (३) अनंतधर्मस्वरूप द्रव्य छे. द्रव्य होवाथी वस्तु छे. (४) गुणपर्यायवाळो छे. जीव नामनी वस्तु गुणपर्यायवाळी छे. (प) तेनुं स्व-परप्रकाशकज्ञान अनेकाकाररूप एक छे. जोयुं? ज्ञानमां अनंतने
(६) वळी ते जीव पदार्थ आकाश आदिथी भिन्न असाधारण चैतन्य-
(७) अन्य द्रव्यो साथे एक क्षेत्रमां रहेवा छतां पोताना स्वरूपने छोडतो
नथी-पररूपे थतो नथी. आवो जीव नामनो पदार्थ समय छे.
हवे सम्यक्दर्शन-ज्ञान-चारित्ररूप परिणमन तथा मिथ्यादर्शन-ज्ञान-चारित्ररूप परिणमनना स्वरूपने स्पष्ट करे छे.
जे शुद्धचैतन्यप्राणथी त्रिकाळ जीवे ते शुद्ध जीव छे. क्षयोपशमभावरूप अशुद्धभावप्राण अने परद्रव्यरूप ईन्द्रियादि प्राणोने द्रष्टिमांथी छोडी, त्रिकाळ शुद्ध जीवनी द्रष्टि-रुचि, एनुं ज ज्ञान अने एमां ज एकपणे रमणता करवी ए सम्यक्दर्शन-ज्ञान-चारित्र छे. ए आत्मानो सद्भूतव्यवहारप्राण छे. ए स्वसमय छे. एने धर्मरूप परिणमन कहे छे. आ धर्मकथा छे, भाई! आ सिवाय बधी विकथा छे. आकरी वात लागे पण वस्तुस्वरूप जेम छे तेम छे.
आत्मा आत्मापणे परिणम्यो, स्वभावपणे परिणम्यो ते स्वसमय छे. आ स्वसमय ए परिणमनरूप छे, सद्भूत व्यवहार छे. दर्शनज्ञानस्वभाव ए त्रिकाळ उपयोग छे. उपयोग ते आत्मा छे ने? आवो त्रिकाळ उपयोगरूप जे स्वभाव एनी हयातीरूप जे शुद्ध आत्मतत्त्व तेनी रुचि, ज्ञान अने रमणता ए सम्यक्रत्नत्रयरूप धर्म छे. ते वडे जीव धर्मात्मा छे, धर्मी छे, आ स्वसमय छे.