बंधकहा
हवे, समयना द्विविधपणामां आचार्य बाधा बतावे छेः-
एकत्वनिश्चिय–गत समय सर्वत्र सुंदर लोकमां;
तेथी बने विखवादिनी बंधनकथा एकत्वमां.
गाथार्थः– [एकत्वनिश्चयगतः] एकत्वनिश्चयने प्राप्त जे [समयः] समय छे ते
[लोके] लोकमां [सर्वत्र] बधेय [सुन्दरः] सुंदर छे [तेन] तेथी [एकत्वे] एकत्वमां [बंधकथा] बीजाना साथे बंधनी कथा [विसंवादिनी] विसंवाद-विरोध करनारी [भवति] छे.
कारण के व्युत्पत्ति प्रमाणे ‘समयते’ एटले एकीभावे (एकत्वपूर्वक) पोताना गुणपर्यायोने प्राप्त थई जे परिणमन करे ते समय छे. तेथी धर्म-अधर्म-आकाश- काळ-पुद्गल-जीवद्रव्यस्वरूप लोकमां सर्वत्र जे कोई जेटला जेटला पदार्थो छे ते बधाय निश्चयथी (नक्की) एकत्वनिश्चयने प्राप्त होवाथी ज सुंदरता पामे छे, कारण के अन्य प्रकारे तेमां सर्वसंकर आदि दोषो आवी पडे. केवा छे ते सर्व पदार्थो? पोताना द्रव्यमां अंतर्मग्न रहेल पोताना अनंत धर्मोना चक्रने (समूहने) चुंबे छे-स्पर्शे छे तोपण जेओ परस्पर एकबीजाने स्पर्श करता नथी, अत्यंत निकट एकक्षेत्रावगाहरूपे रह्या छे तोपण जेओ सदाकाळ पोताना स्वरूपथी पडता नथी, पररूपे नहि परिणमवाने लीधे अनंत व्यक्तिता नाश पामती नथी माटे जेओ टंकोत्कीर्ण जेवा (शाश्वत) स्थित रहे छे अने समस्त विरुद्ध कार्य तथा अविरुद्ध कार्यना हेतुपणाथी जेओ हंमेशा विश्वने उपकार करे छे- टकावी राखे छे. आ प्रमाणे सर्व पदार्थोनुं भिन्न भिन्न एकपणुं सिद्ध थवाथी जीव नामना समयने बंधकथाथी ज विसंवादनी