Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 642 of 4199

 

१२४ ] [ प्रवचन रत्नाकर भाग-३ जेम निमित्त पर चीज छे, ते ‘आ जीव’ नहि होवाथी अजीव छे. तथा जेम रागमां चैतन्यनो अंश नथी तेथी ते अजीव छे, तेम आ भेदने पण अजीव कह्या छे. केम के भेदनुं लक्ष करतां राग ज एटले अजीव ज उत्पन्न थाय छे तेथी भेदने अजीव पुद्गलना परिणाम कह्या छे. आ अजीव अधिकार छे. तेथी जे जीव नथी, जीवमां नथी तेने पुद्गलना परिणाम कह्या छे. भाई! बहार डोकियां मारे छे तो अंदर जा ने! अंदर आनंदनो नाथ अनादि-अनंत, अविचळ, त्रिकाळी ध्रुव चैतन्य भगवान छे तेने जो ने! तेने जोतां संयमलब्धिना भेदो जणाशे नहि. आवी वात छे.

संयमलब्धिनां स्थानो एटले के क्रमे क्रमे निर्मळतानी प्राप्तिनां स्थानो, क्रमे क्रमे रागनी निवृत्ति अने वीतराग संयमना परिणामोनी प्राप्तिनां जे स्थानो, भेदो छे ते बधाय जीवद्रव्यने नथी. केम? तो कहे छे के शुद्ध द्रव्य उपर पर्याय वाळतां अनुभूतिमां ते आवता नथी.

प्रश्नः– आ तो आपे कोई नवो मार्ग काढयो छे?

उत्तरः– प्रभु! आ तो अनादिनो मार्ग छे. अनादिनो आ ज मार्ग छे; नवो नथी. अरे! आ मार्गना भान विना तुं ८४ना अवतार करीने मरी गयो छे. तने परिचय नथी तेथी नवो लागे छे; पण शुं थाय? बापु! निमित्तनी द्रष्टिथी, शुभरागनी द्रष्टिथी अने भेदनी द्रष्टिथी तो विकार ज उत्पन्न थाय छे. अने तेना फळमां चार गतिमां रखडवानुं-रझळवानुं ज थाय छे. अहीं तो कहे छे के शुद्ध जीवद्रव्यना आश्रये जे निर्मळतानां परिणामो, संयमलब्धिनां परिणामो उत्पन्न थाय छे ते पर्यायरूपे तो छे पण ते द्रव्यमां नथी. अहा! आवो मार्ग अनादिनो छे. जेने हित करवुं होय तेने समजवो पडशे. भेद द्रव्यमां नथी, पण कोने एनुं साचुं ज्ञान थाय? जेने द्रव्यद्रष्टि थाय, द्रव्य अनुभूतिमां जणाय तेने एम जणाय के भेद द्रव्यमां नथी. भाई! आ अनुभवनी चीज कांई वादविवादे पार पडे एम नथी.

प्रश्नः– तत्त्वार्थसूत्रमां सम्यग्दर्शन निसर्ग अने अधिगम एम बन्ने रीतथी थाय छे. छतां आप कहो छो के एक (निसर्ग)थी ज थाय छे. ए केवी रीते?

समाधानः– प्रभु! ध्यान दईने सांभळने भाई! सम्यग्दर्शननी पर्याय, वर्तमान पर्यायने अंतरमां वाळतां प्रगट थाय छे. त्यारे निमित्त के रागनुं पण लक्ष रहेतुं नथी. अधिगमथी एटले निमित्त उपर लक्ष राखीने समक्ति थाय छे एवो अर्थ नथी. वर्तमान परिणाम अंतःतत्त्वमां वळे छे त्यारे सम्यग्दर्शनना परिणाम थाय छे. अने त्यारे भेदरूप भाव (जे परिणाममां छे) ते पण सम्यग्दर्शनना परिणामनो विषय रहेतो नथी. अधिगमथी सम्यग्दर्शन थाय छे एम जे कह्युं छे ते निमित्तनुं ज्ञान कराव्युं छे. ते अधिगम