Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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समयसार गाथा प० थी पप ] [ १२प सम्यग्दर्शन पण स्वभावनी द्रष्टिथी ज थाय छे, परंतु निमित्तनुं ज्ञान कराववा तेने अधिगम सम्यग्दर्शन कहे छे.

प्रश्नः– जो निमित्तथी कांई न थाय तो अधिगमथी सम्यग्दर्शन थाय छे एम शा माटे कह्युं छे?

उत्तरः– ए तो निमित्तनी उपस्थितिमां श्रवण कर्युं हतुं के-‘अहो! तुं शुद्धात्मा छो’ ए बताववा कह्युं छे. श्री अमृतचंद्राचार्ये कह्युं छे के अमारा गुरुए अमने शुद्धात्मानो उपदेश आप्यो हतो. त्यां उपदेश आप्यो एवुं पहेलां लक्ष हतुं. पण पछी ते लक्ष छोडीने ज्यारे शुद्धात्मानी सन्मुख थाय छे त्यारे अनुभूति थाय छे. त्यारे निमित्तनुं लक्ष रहेतुं नथी. अधिगमथी सम्यग्दर्शन थाय छे एम जे कह्युं छे ते निमित्तथी कथन कर्युं छे. बाकी जेने सम्यग्दर्शन थाय छे तेने स्वभावना आश्रये ज थाय छे. निमित्तना आश्रये नहि.

२८. पर्याप्त तेम ज अपर्याप्त एवां बादर ने सूक्ष्म एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय अने संज्ञी तथा असंज्ञी पंचेन्द्रिय जेमनां लक्षण छे एवां जे जीवस्थानो ते बधांय जीवने नथी. गजब वात छे! बधांय जीवस्थानो जीवने नथी कारण के ते पुद्गलद्रव्यना परिणाममय छे तेथी अनुभूतिथी भिन्न छे. अभेद शुद्ध वस्तुमां भेद नथी. केमके अभेदना ध्यानमां ते भेद अंदर आवता नथी.

शंकाः– शास्त्र वांचतां ज्ञान थाय छे एम नथी. एटले के निमित्तथी ज्ञान थतुं नथी तो आप शास्त्र शा माटे वांचो छो? शास्त्र तो निमित्त छे, परद्रव्य छे. अने आ ज (समयसार ज) केम वांचो छो? बीजां शास्त्रो केम वांचता नथी? माटे निमित्तमां कांईक विशेषता तो छे ज.

समाधानः– भगवान! निमित्तथी कांई न थाय. भाई! तने निमित्तथी थाय छे एम केम सूझे छे? निमित्तथी लाभ थवानुं तो दूर रहो, अहीं तो कहे छे के ज्यां सुधी निमित्तनुं लक्ष छे त्यांसुधी विकल्प छे अने ते विकल्प पुद्गलना परिणाममय छे, कारण के अंतरमां लक्ष जाय छे त्यारे ते विकल्पना परिणाम अनुभूतिमां आवता नथी. अहाहा! जे सांभळ्‌युं छे ते पोतानी ज्ञाननी पर्याय छे अने ते पर्याय पोताथी (जीवथी) थई छे, निमित्तथी के वाणीथी थई नथी. छतां ते परलक्षी ज्ञाननी पर्याय पण, निर्मळ पर्यायने अंतरमां वाळतां, पर तरीके रही जाय छे. भाई! आ तो जेने अंतरनी वात समजवी होय तेने माटे छे. ते समजवा पण केटलो पुरुषार्थ जोईए!

२९. मिथ्याद्रष्टि अर्थात् विपरीत द्रष्टिना परिणाम ते पहेलुं गुणस्थान, सासादन सम्यग्द्रष्टि ते बीजुं गुणस्थान, सम्यग्मिथ्याद्रष्टि मिश्र ते त्रीजुं गुणस्थान, असंयत