समयसार गाथा प० थी पप ] [ १२७ पुरुषथी-आत्माथी ‘भिन्नाः’ भिन्न छे. आ बधाय भावो भगवान आत्माने नथी. ‘तेन एव’ तेथी ‘अन्तः तत्त्वतः पश्यतः’ अंतर्द्रष्टि वडे जोनारने, शुद्ध अंतःतत्त्वनी अनुभूति करनारने ‘अमी नो द्रष्टाः स्युः’ ए बधा देखाता नथी. अहा! आवुं तत्त्व पकडाय-समजाय नहि एटले अज्ञानी बाह्य व्रत-तपने, क्रियाकांडने धर्म मानी ले छे. परंतु भाई! तुं भूलो पडयो छे. जे मार्गे जवानुं हतुं ते मार्गे गयो नहि अने जे मार्गथी खसवानुं हतुं ते खोटा मार्गे तुं चढी गयो छे. अंदर भगवान आनंदनो नाथ पूर्ण स्वरूपे ज्यां छे त्यां जवुं छे, नाथ! तेने प्राप्त करवो छे, प्रभु! तो ते ज्यां छे त्यां जा ने! तने ते अवश्य प्राप्त थशे. शुं ते पर्यायमां, रागमां, निमित्तमां के भेदमां छे के त्यां तुं शोधे छे? (त्यां नथी, भाई!)
ज्ञायकभावने अर्थात् चैतन्यशक्ति-स्वभावभावने अंतर्द्रष्टि वडे जोतां ते बधा भेद भावो देखाता नथी. अहाहा! वर्तमान पर्याय अंतर्मुख थई चिदानंदघनमय शुद्ध अंतः तत्त्वने ज्यां जुए छे त्यां ए बधा भेदो अनुभूतिमां जणाता नथी. आवो मार्ग छे, प्रभु!
प्रश्नः– पण तेनुं (मार्ग प्राप्त करवानुं) कांई साधन छे के नहीं? के एम ने एम प्राप्त थाय छे?
उत्तरः– साधन छे ने. प्रज्ञाछीणी वा आत्मानुभव ए साधन छे. व्यवहारना विकल्प जे छे ए कोई एनुं साधन छे ज नहि. रागथी भिन्न पडवानुं साधन बहार नथी. अंतर्द्रष्टि ए साधन छे. अहा! सांसारिक धंधामां केटकेटली सावधानी राखे? एमां केटला उल्लसित परिणाम होय छे? अने अहीं ज्यां भगवानमां जवुं छे त्यां उल्लास न मळे, सावधानी न मळे तो मार्ग केम प्राप्त थाय?
अहीं कहे छे के शुद्ध अंतःतत्त्वमां भेदो नथी. शुभराग अने निमित्तनी वात तो कयांय दूर रही गई. ए तो स्थूळ बहिर्तत्त्व छे. अंतःतत्त्व एवुं जे द्रव्य अर्थात् चैतन्यस्वभाव तेने जोनार-अनुभवनार पर्यायने एमां भेद भासता नथी, ‘एकं परं द्रष्टं स्यात्’ मात्र एक सर्वोपरि तत्त्व ज देखाय छे. एटले के केवळ एक चैतन्यभावस्वरूप अभेद आत्मा ज देखाय छे. भाई! आ तो एकला माखणनी वात छे!
अहो! शुं समयसारनी शैली! शुं तेनी अगाधता! शुं तेनी भाषा! कोईने एम थाय के एकला समयसारनी ज प्रशंसा करे छे. बापु! एम अर्थ न थाय, भाई. अमने ते सर्व भावलिंगी संतोनां शास्त्र पूज्य छे. दर्शनसारमां दिगंबर मुनिराज श्री देवसेनाचार्य कहे छे के- प्रभो! (कुंदकुंदाचार्यदेव) आप महाविदेहक्षेत्रमां जईने जो आ वस्तु न लाव्या होत तो अमे धर्म केम पामत? एटले शुं एमना गुरु पासे कांई न हतुं एम अर्थ थाय? भाई! एम नथी. अहा! साक्षात् अरिहंत परमात्मा बिराजे छे त्यां प्रभु आप गया अने आ वात लाव्या-एम त्यां प्रमोद बताव्यो छे. एथी करीने (आ वचन वडे) पोताना गुरुनो