१२८ ] [ प्रवचन रत्नाकर भाग-३ अनादर कर्यो छे वा पोताना गुरुनी परंपरामां कांई न हतुं एवो अर्थ न थाय. श्री कुंदकुंदाचार्यनी अधिक्ता-विशेषता भासी छे तेथी बहुमानथी एम कह्युं छे. कवि श्री वृंदावनदासजीए पण कह्युं छे के-कुंदकुंदाचार्य समान थया नथी, छे नहि अने थशे नहि. ‘हुए, न हैं, न होंहिंगे मुनिंद कुंदकुंदसे.’ एटले शुं बीजा मुनिओनो एमां अनादर करे छे एवो अर्थ छे? जे विशेषता द्वारा पोतानो उपकार थयो तेने ते वर्णवे छे.
अहीं कहे छे के-द्रष्टि अंतर्मुख थतां एक उत्कृष्ट वस्तु, अभेद चैतन्यसामान्य ज अनुभवाय छे, देखाय छे, जणाय छे. अलबत, ते अभेदने अवलोके छे तो वर्तमान पर्याय, पण ते पर्याय भेदने अवलोक्ती नथी, एक अभेदने ज अवलोके छे.
परमार्थनय अभेद ज छे. तेथी ते द्रष्टिथी जोतां भेद देखातो नथी. परमार्थनयनी द्रष्टिमां आत्मा एक चैतन्यमात्र ज देखाय छे. परमार्थद्रष्टि पर्यायना भेदोने स्वीकारती नथी. एटले व्यवहारनय छे ज नहि एम नथी. नय छे ते ज्ञान छे अने जो ज्ञान छे तो तेनो विषय केम न होय? माटे व्यवहारनयनो विषय जे भेद ते छे. परंतु भाई! ते आश्रय करवा लायक नथी. माटे तेनो अहीं निषेध कर्यो छे.
आ शास्त्रनी टीकाना चोथा कळशमां आवे छे के-निश्चयनय अने व्यवहारनयने विषयनी अपेक्षाए विरोध छे. तथा भगवाने तो एक शुद्ध त्रिकाळी जीवने ज उपादेय कह्यो छे. ‘जिन वचसि रमन्ते’-एनो अर्थ कळशटीकाकारे आवो कर्यो छे के-‘आसन्नभव्य जीवो दिव्यध्वनि द्वारा कही छे उपादेयरूप शुद्ध जीववस्तु तेमां सावधानपणे रुचि-श्रद्धा-प्रतीति करे छे. विवरण-शुद्ध जीववस्तुनो प्रत्यक्षपणे अनुभव करे छे तेनुं नाम रुचि-श्रद्धा-प्रतीति छे.’ जिनवचनमां रमवुं एम जे कह्युं छे तेनो अर्थ ए थाय छे के जिनवचनमां जे त्रिकाळी शुद्ध जीववस्तुने उपादेय कही छे तेमां रमवुं; परंतु उभयनयमां-विरुद्ध बन्ने नयोमां रमवुं एवो अर्थ नथी. जिनवचनमां निश्चय अने व्यवहार बन्ने नय कह्या छे. परंतु बन्ने नयमां न रमाय. कां तो अज्ञानपणे व्यवहारनयना विषयमां रमाय अथवा ज्ञानपणे अंतरना विषयमां रमाय.
मोक्षमार्गप्रकाशकना सातमा अधिकारमां आवे छे के-‘जिनमतमां निश्चय अने व्यवहार बे नय कह्या छे माटे अमारे ए बन्ने नयोनो अंगीकार करवो, ए प्रमाणे विचारी जेम केवळ निश्चयाभासना अवलंबीओनुं कथन कर्युं हतुं ए प्रमाणे तो ते निश्चयनो अंगीकार करे छे तथा जेम केवळ व्यवहाराभासना अवलंबीओनुं कथन कर्युं हतुं तेम व्यवहारनो अंगीकार करे छे; जोके ए प्रमाणे अंगीकार करवामां बन्ने नयोमां परस्पर विरोध छे, तोपण करे शुं? कारण बन्ने नयोनुं साचुं स्वरूप तेने भास्युं नथी अने जैनमतमां बे नय कह्या छे तेमां कोईने छोडयो पण जतो नथी तेथी