Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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समयसार गाथा प० थी पप ] [ १२९ भ्रमपूर्वक बन्ने नयोनुं साधन साधे छे; ए जीवो पण मिथ्याद्रष्टि जाणवा.’ बहु सरस खुलासो छे.

अहीं कहे छे के निश्चयनयनी द्रष्टिमां चैतन्यमात्र ज आत्मा देखाय छे. अहाहा! अंतर्द्रष्टि करनारने परम एटले उत्कृष्ट लक्ष्मीवाळो भगवान आत्मा, सर्वोपरि एकरूप चैतन्यतत्त्व ज देखाय छे. एक अभेदनी द्रष्टिमां भेद जणाता नथी. भाई! अंदर आखुं चैतन्यरत्न पडयुं छे. तेनो महिमा करी तेनी द्रष्टि अनंतकाळमां करी नहि अने व्यवहारनो महिमा करी करीने जन्म-मरणना ८४ना चक्करमां रखडी रह्यो छे.

अनुभवमां आत्मा अभेद ज जणाय छे. माटे ते वर्णादि अने रागादि भावो पुरुषथी- आत्माथी भिन्न ज छे.

आ वर्णथी मांडीने गुणस्थान पर्यंतना जे भावो छे तेमनुं स्वरूप विस्तारथी जाणवुं होय तो गोम्मटसार आदि ग्रंथोमांथी जाणी लेवुं. [प्रवचन नं. ९९ थी १०४ * दिनांक १८-६-७६ थी २३-६-७६]