१प८ ] [ प्रवचन रत्नाकर भाग-३ परमात्मा अनंत पांखडीए खीलीगया छे. ए प्रभुनी प्रसिद्धि छे. भगवान! तारां वखाण कई रीते करीए? अहा! अनंत आनंद-ज्ञान आदि अनंत गुणनी निर्मळ पर्यायनो उत्पाद-व्यय थवो अथवा गुणना आश्रये उत्पाद-व्यय थवो ए आत्मानी प्रसिद्धि छे. परंतु परना आश्रये जे रागादि थाय छे ते आत्मानी प्रसिद्धि नथी. आवुं आकरुं पडे पण शुं थाय? भाई! मारग तो जे जिनेश्वरदेवे गणधरो अने इन्द्रोनी उपस्थितिमां सभामां कह्यो छे ते आ ज छे. भगवान सीमंधरनाथ महाविदेहक्षेत्रमां बिराजे छे. त्यां जे वात दिव्यध्वनिमां आवी रही छे ए ज वात श्री कुंदकुंदाचार्य अने अमृतचन्द्राचार्य अहीं कहे छे. श्री कुंदकुंदाचार्य तो त्यां गया हता. पण श्री अमृतचंद्राचार्य तो नहोता गया. परंतु अंदरना भगवान पासे गया हता ने! तेथी आत्मानी वात प्रसिद्ध करे छे. कहे छे के-हुं आनंदनो नाथ अनंत अनंत ज्ञान, दर्शन, शांति, स्वच्छता, प्रभुता एवा एक एक गुणनी पूर्णता सहित अनंतगुणनी पूर्णतानो पिंड प्रभु आत्मा छुं. तथा निर्मळ पर्यायनी उत्पत्ति अने निर्मळ पर्यायनो व्यय थवो ते आत्मानी प्रसिद्धि छे, आत्मख्याति छे.
प्रश्नः– एकलो शुभभाव जीवनी साथे संबंध राखे छे एम कहो तो?
उत्तरः– केटलाक व्रत-तप वडे धर्म माने छे तथा केटलाक देव-गुरु-शास्त्रनी भक्तिमां धर्म माने छे. शुभभावमां धर्म माननारा ए बधा एक सरखी रीते मिथ्याद्रष्टि छे. प्रवचनसारनी गाथा ७७ मां कह्युं छे के-शुभाशुभ भावो पैकी शुभभाव-पुण्यभाव ठीक छे अने अशुभभाव-पापभाव अठीक छे एम जे माने छे ते मिथ्यात्वथी ढंकायेलो घोर संसारमां रखडे छे. पुण्य अने पापमां तफावत नथी एम जे मानतो नथी ते-‘हिंडदि घोरमपारं संसारं मोहसंछण्णो’-मोहाच्छादित वर्ततो थको घोर अपार संसारमां रखडे छे. भाई! दिगम्बर मार्ग बहु सूक्ष्म, बापा! संप्रदाय मळी गयो माटे दिगम्बर धर्म समजाई जाय एम नथी. दिगम्बर धर्म ए कोई संप्रदाय, पंथ के पक्ष नथी. ए तो वस्तुनुं स्वरूप छे.
हवे कहे छे के-आ रागादि भावो जेम पुद्गलनी साथे आविर्भाव-तिरोभाव पामे छे अर्थात् उत्पन्न-व्ययरूप थाय छे तेम जो तेओ आत्मानी साथे उत्पन्न-व्ययरूप थाय तो जे पुद्गलनुं स्वरूप छे ते जीव द्वारा अंगीकार करवामां आवतुं होवाथी जीव अने पुद्गलना एकपणानो प्रसंग आवे. अहाहा! शुं अद्भुत टीका! आवी वीतरागमार्गनी वात एक क्षण पण समजमां बेसी जाय तो भवनो अंत आवी जाय एवी आ वात छे. शुं कहे छे? के-जेम जडकर्म-पुद्गल साथे रागादि अजीव उत्पन्न थाय छे अने व्यय पामे छे माटे पुद्गल साथे रागादिने तादात्म्य संबंध छे तेम, जो कोई एवो अभिप्राय राखे के जीवनी साथे रागादि उत्पन्न-व्ययरूप थाय छे माटे जीवने रागादि साथे संबंध