समयसार गाथा-६२ ] [ १प९ छे तो तेणे पुद्गलने ज जीव मान्यो छे. तेनी मान्यता प्रमाणे जीवद्रव्य भिन्न रह्युं नहि पण ते पुद्गलरूप थई गयुं एम कहे छे. सूक्ष्म वात, भाई! जे आत्माए एवो अभिप्राय राख्यो छे के मारी (आत्मानी) साथे रागनी उत्पत्ति अने रागनो व्यय थाय छे तेणे पुद्गलने ज आत्मा मान्यो छे, पुद्गलथी भिन्न पोताना चैतन्यस्वरूपने एणे मान्युं ज नथी.
प्रश्नः– परंतु आवो धर्म पामवानुं साधन शुं? भक्ति आदि करीए ते साधन खरुं के नहि?
उत्तरः– अरे भगवान! देव-गुरु-शास्त्रनी भक्ति तो राग छे. अने रागनी उत्पत्ति अने तेना व्ययनो संबंध तो निश्चयथी पुद्गल साथे छे. तेथी जो भक्ति आदिना रागने ज तुं साधन मानीश तो पुद्गलने ज तुं जीव माने छे एम निश्चित थतां मिथ्यात्व ज थशे.
व्यवहारथी एक समयनी पर्यायमां-संसार अवस्थामां ते हो भले, पण जीवने तेनी साथे तादात्म्य संबंध नथी. ए ज वात हवे पछीनी गाथामां कहेशे के-भाई! जो तुं संसार अवस्थामां पण रागादि मारां छे एम मानीश तो जीव पुद्गलस्वरूप थई जशे अने पुद्गलनी ज मुक्ति थशे. गजब वात छे. अन्यमतनां करोडो पुस्तको वांचे तोपण आ वात नीकळे नहीं. कयांथी नीकळे? आ तो जेओ त्रिलोकनाथ जिनेश्वरदेव पासे गयेला अने अंतरमां बिराजमान निज जिनेश्वरदेव चैतन्य भगवान पासे गयेला तेवा संतोनी वाणी छे. ए संतो कहे छे के ज्यां अमे गया हता त्यां तो रागादि छे ज नहि ने. अहाहा! शुद्ध चिदानंदमय चैतन्यमूर्ति भगवान अमारो जिनदेव छे. त्यां अमे गया हता. त्यां राग-द्वेष-संसार छे ज नहि. रागादिनो संबंध आत्मा साथे छे ज नहि. आवी संतोनी वाणी सांभळवा मळवी पण दुर्लभ छे.
एक बाजु एम कहे के पुण्य-पाप आदि भाव जीवनी पर्यायमां थाय छे अने जीव तेनो र्क्ता-भोक्ता छे. ए तो पर्यायनुं ज्ञान कराववा ज्ञाननी अपेक्षाए कथन छे. ज्यारे अहीं द्रष्टिनी अपेक्षाथी एम कहे छे के राग-द्वेषादिनी उत्पत्ति अने व्यय पुद्गलनी साथे संबंध राखे छे. स्वभावनी द्रष्टिए जोतां ते राग-द्वेषादि परनां छे. जो ते राग-द्वेषादि भावो जेम पुद्गलनी साथे उत्पाद-व्ययपणे व्याप्त थतां देखाय छे तेम आत्मानी साथे पण एकपणे देखाय तो आत्मा पुद्गलमय थई जाय, जीवपणे रहे नहि, अर्थात् राग विनानो अखंड आनंदकंदस्वरूप जे आत्मा तेनो नाश थई जाय. तेथी पुद्गलनी ज प्रसिद्धि थाय. अहाहा! अतीन्द्रिय ज्ञान अने आनंदनो सागर भगवान आत्मा अंदर शाश्वत बिराजे छे ने नाथ! तेने जो तुं रागवाळो माने तो तुं पुद्गलमय थई जाय, जीवपणे न रहे. जो तुं शुभभावना रागथी धर्म माने तो त्यां आत्मा न रहे, प्रभु! एकला पुद्गलनी ज प्रसिद्धि थाय. भाई! आ तो खूब धीरज अने न्यायथी प्राप्त थाय एवो मार्ग छे.