Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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१६० ] [ प्रवचन रत्नाकर भाग-३ प्रश्नः– आ पंचमकाळमां शुभभाव ज होय छे. तेथी व्रत, तप, भक्ति आदि करवां ए धर्म छे.

उत्तरः– भाई! ए व्रत, तप, भक्ति आदिना शुभभाव तो पुद्गलनी साथे संबंध राखे छे. ए आत्मानी साथे तादात्म्य संबंधे व्यापता ज नथी.

प्रश्नः– आप आम कहो छो तेथी एकला पडी जशो.

उत्तरः– भगवान! कोण एकलो अने कोण बेकलो? अहीं तो जे सत्य छे ते कहेवाय छे. अहा! शुं दिगंबर संतोए काम कर्यां छे! केवळज्ञानीना विरह भूलाव्या छे! भाई, तुं एम माने के शुभरागथी धर्म थाय तो ए तो पुद्गलनी प्रसिद्धि थई, नाथ! तारी प्रसिद्धि एमां न आवी. भाई! रागनो तादात्म्य संबंध तो पुद्गलनी साथे छे, केमके ज्यां ज्यां कर्म त्यां त्यां राग छे. आत्मावलोकनमां पण ए ज कह्युं छे के-ज्यां सुधी निमित्त-कर्म छे त्यां सुधी राग छे; अने कर्म नथी तो राग नथी. राग, पुद्गलना संबंधमां उत्पन्न थाय छे माटे ते आत्मानुं स्वरूप नथी एम अहीं कहेवुं छे.

अहाहा! भगवान आत्मा तो अनंत अनंत ज्ञान, आनंद अने शान्तिनो भंडार छे. ए भंडारमांथी नीकळे तो शुं राग नीकळे? एमां राग छे कयां के नीकळे? रागनी उत्पत्ति थाय एवो कोई गुण आत्मामां नथी. अनंत गुणरत्नोना भंडार भगवान आत्मामां द्रष्टि स्थापतां पर्यायमां अनंत आनंद-शांति आदिनी पर्याय प्रगट थाय छे अने एना उत्पाद-व्ययनो संबंध निज द्रव्य साथे छे अने ए उत्पाद-व्यय सिद्धमां पण अनंतकाळ रहेशे. आवी वस्तुस्थिति छे.

अहीं कहे छे के-आ रागादि भावो आत्मानी साथे संबंध राखे छे एम जो कोई जाणे- माने तो आत्मा पुद्गलमय थई जाय, केमके रागादिने तो पुद्गल-अजीवनी साथे तादात्म्य संबंध छे. तेथी पुद्गलथी भिन्न जीव तो कोई रहे नहि. तेथी जीवनो ज अवश्य अभाव थई जाय. गजब वात, भाई! ज्यारे त्रिलोकीनाथ दिव्यध्वनि द्वारा आ अर्थो प्रगट करे छे त्यारे ए ज भवे मोक्ष जनारा गणधरो अने एकावतारी इन्द्रो पण विस्मय पामे छे. ए दिव्यध्वनिनी शी वात! ए दिव्यध्वनिनो आ सार छे के जो तुं शुभरागथी धर्म थवो माने छे, शुभरागने पोतानो माने छे तो तुं पुद्गलने ज पोतानो माने छे अर्थात् तुं पोतानो ज (जीवनो ज) अभाव करे छे.

* गाथा ६२ः भावार्थ उपरनुं प्रवचन *

दया, दान, व्रत, तप, आदिनो विकल्प-राग जे पर्यायमां प्रगट थाय छे ते पुद्गलद्रव्यनी साथे तादात्म्यरूप छे, परंतु आत्मानी साथे तादात्म्यरूप नथी. आकरी वात, भाई. जीव-अजीव अधिकार छे ने! जीव तो अखंड अभेद पूर्ण ज्ञानानंदस्वरूप एकरूप छे. तेनी पर्यायमां आ जे राग, भेद, आदि थाय छे ते पुद्गलनी साथे संबंध राखे छे