Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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समयसार गाथा-६२ ] [ १६१ एम कहे छे. अहीं तो त्रिकाळी स्वभाव अने स्वभावनी द्रष्टि बताववी छे ने? तेथी कहे छे के-आ राग अने भेद आदिना भाव जेम पुद्गलनी साथे संबंध राखे छे तेम जीवनी साथे पण संबंध राखे छे एम मानो तो जीव अने पुद्गलमां कोई भेद न रहे. चैतन्यमय भगवान आत्माना शुद्ध स्वभावमां रागादि छे ज नहीं. तेथी रागादिनो संबंध पुद्गल साथे गणीने, पोतानो अभेदस्वभाव भिन्न बताव्यो छे.

वर्णथी मांडीने गुणस्थान सुधीना बधाय भावोने जेम पुद्गलनी साथे तादात्म्य संबंध छे तेम जीवनी साथे पण तादात्म्यपणुं होय तो जीव अने पुद्गलमां कोई भेद रहेतो नथी. आम थवाथी जीवनो ज अभाव थाय. चैतन्यप्रकाशनी मूर्ति झळहळज्योति-स्वरूप भगवान आत्मा अंदर शाश्वत बिराजे छे. ते ज्ञायक चैतन्यज्योतिने रागादि साथे तादात्म्य होय तो आत्मा अचेतन थई जाय एम कहे छे. जेम शरीर, कर्म, आदि पुद्गल अचेतन छे तेम शुभराग पण अचेतन छे. व्यवहार रत्नत्रयनो राग पण अचेतन छे अने पुद्गलनी साथे तादात्म्यरूपे छे, केमके रागमां चैतन्यस्वभावनो अभाव छे. छठ्ठी गाथानी टीकामां पण आवे छे के ज्ञायकस्वभावी चैतन्यज्योत कदीय शुभाशुभभावोना स्वभावे जडपणे थती नथी. गाथा ७२मां पण ए शुभाशुभभावरूप आस्रवोने विपरीत स्वभाववाळा एटले जड कह्या छे. आवी चिन्मात्र वस्तु एकरूप आत्मा छे ते रागरूपे केम थाय? राग छे तो जीवनी पर्यायमां, अने ते चारित्रगुणनी दोषरूप विपरीत पर्याय छे, परंतु स्वभावनी द्रष्टिथी त्रिकाळी झळहळ चैतन्यज्योतिस्वरूप भगवान आत्माने जोतां ते भिन्न अचेतनपणे जणाय छे. माटे राग जेम पुद्गलथी तद्रूप छे तेम जो आत्माथी तद्रूप छे एम मानो तो आत्मा अचेतन थई जाय. भाई, जैनदर्शन बहु सूक्ष्म छे.

अहाहा! चैतन्यप्रकाशनुं पूर प्रभु आत्मा छे. तेमां व्यवहाररत्नत्रयनो राग पण समातो नथी, व्यापतो नथी, केमके राग छे ते पुद्गलनी साथे तादात्म्यपणे छे. तेथी जीवने रागथी संबंध छे एम जो कहो तो जीव पुद्गलमय थई जाय, अचेतन थई जाय. स्वपरप्रकाशक चेतन्यज्योतिस्वरूप आत्मा रागने प्रकाशे छे, जाणे छे, पण ते रागरूप थतो नथी. भाई! आ समजवा माटे परथी घणा उदासीन थवुं जोईए. अहीं कहे छे के अचेतन राग पुद्गलथी एकरूप छे माटे एनाथी तुं उदास थई जा. प्रभु! ए तारी चीज नथी तेथी अंतर्मुख थई तारुं आसन ज्ञायकस्वरूप चैतन्यमूर्ति भगवानमां जमावी दे. जो तुं रागथी तादात्म्य संबंध करवा जईश तो तुं अचेतन थई जईश अने तेथी तारो-जीवनो ज अभाव थई जशे एवो महादोष आवशे. आकरी वात, भगवान! पण वात तो आ ज छे.

[प्रवचन नं. १३प-१३६ (चालु १९मी वारनां) * दिनांक १३-११-७८ थी १प-११-७८]