समयनुं (आत्मानुं) एकपणुं ऊभुं छे, छतां ते एकपणामां ऊभा न रहेतां (तेमां सन्मुख न थतां) कर्मना प्रदेशमां स्थित थाय छे एटले के रागद्वेषमां एकपणुं करे छे ते परसमयपणुं छे, अने ते ज विसंवाद छे, दुःख छे, अनंत संसारनुं मूळ छे. भाई! ए दुःखना घेरावामां घेरावानुं छे. भले एम माने के अमे सुखी छीए, पण ए तो तेनो मूढभाव छे.
स्वसमयपणे परिणमे ए तो सुंदर छे. पण एना ठेकाणे परसमयपणे परिणमन थयुं त्यां ज एकमां बीजी वात ऊभी थई. एक जीव नामनो समय, तेने स्वसमयरूप-परसमयरूप द्विविधपणुं केम होय? न ज होय. बेपणुं अनादिथी पोते ऊभुं कर्युं छे. पोताना आत्माने छोडीने, शुभराग के अशुभराग साथे एकत्वपणुं कर्युं ए बेपणुं छे. ए परसमय छे अने पोताना शुद्ध आत्मा साथे एकत्वपणे निर्मळ परिणमे ते स्वसमय छे, ते सुंदर छे.
जगतमां बधा पदार्थो भिन्न भिन्नपणे पोताना स्वरूपे रह्या छे. त्यारे भगवान आत्मा सच्चिदानंद प्रभु शुद्ध छे तेने वळी आ बंधपणुं शुं? माटे (खरेखर तो) समयनुं एकपणुं होवुं ज सिद्ध थाय छे. रागपणे परिणमवुं अने एमां टकवुं एवुं जे परसमयपणुं ए विसंवाद छे, झघडो छे. तेमां जीवनी शोभा, सुंदरता नथी.
निश्चयथी सर्व पदार्थो पोतपोताना स्वभावमां स्थित रह्ये ज शोभा पामे छे. परंतु जीव नामना पदार्थनी अनादि काळथी पुद्गलकर्म साथे निमित्तरूप बंधअवस्था छे. बीजी चीज साथे निमित्तरूपे अवस्था थवी ते बंधअवस्था छे. ते बंधअवस्थाथी जीवमां विसंवाद खडो थाय छे, असत्यार्थपणुं उत्पन्न थाय छे. आत्माने राग साथे एकत्व थतां, आत्मानुं एकपणुं के सुखपणुं उत्पन्न थतुं नथी; पण दुःखपणुं उत्पन्न थाय छे. तेथी ते शोभा पामतुं नथी. माटे वास्तविकपणे विचारवामां आवे तो एकपणुं ज सुंदर छे, एकमां एकत्व थवुं ए ज सुंदर छे. ध्रुवस्वरूप भगवान आत्मा-एमां पर्यायने वाळतां आनंदनी दशा उत्पन्न थाय छे ते आत्मानी शोभा छे. एथी ऊलटुं रागमां एकत्व थवुं ते आत्मानी अशोभा अने दुःखरूप दशा छे.