Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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६८ [ समयसार प्रवचन

कामभोगनीकथा तो सौने सुलभ (सुखे प्राप्त) छे. पण निर्मळ भेदज्ञानरूप प्रकाशथी स्पष्ट भिन्न देखवामां आवे छे एवुं मात्र आ भिन्न आत्मानुं एकपणुं ज-जे सदा प्रगटपणे अंतरंगमां प्रकाशमान छे तोपण कषायचक्र (-कषायसमूह) साथे एकरूप जेवुं करवामां आवतुं होवाथी अत्यंत तिरोभाव पाम्युं छे (-ढंकाई रह्युं छे) ते - पोतामां अनात्मज्ञपणुं होवाथी (-पोते आत्माने नहि जाणतो होवाथी) अने बीजा आत्माने जाणनाराओनी संगति-सेवा नहि करी होवाथी, नथी पूर्वे कदी सांभळवामां आव्युं, नथी पूर्वे कदी परिचयमां आव्युं अने नथी पूर्वे कदी अनुभवमां आव्युं. तेथी भिन्न आत्मानुं एकपणुं सुलभ नथी. भावार्थः– आ लोकमां सर्व जीवो संसाररूपी चक्र पर चडी पांच परावर्तनरूप भ्रमण करे छे. त्यां तेमने मोहकर्मना उदयरूप पिशाच धोंसरे जोडे छे, तेथी तेओ विषयोनी तृष्णारूप दाहथी पीडित थाय छे अने ते दाहनो ईलाज ईन्द्रियोना रूपादि विषयोने जाणीने ते पर दोडे छे; तथा परस्पर पण विषयोनो ज उपदेश करे छे. ए रीते काम (विषयोनी ईच्छा) तथा भोग (तेमने भोगववुं) -ए बेनी कथा तो अनंत वार सांभळी, परिचयमां लीधी अने अनुभवी तेथी सुलभ छे. पण सर्व परद्रव्योथी भिन्न एक चैतन्यचमत्कारस्वरूप पोताना आत्मानी कथानुं ज्ञान पोताने तो पोताथी कदी थयुं नही, अने जेमने ते ज्ञान थयुं हतुं तेमनी सेवा कदी करी नहि; तेथी तेनी कथा (वात) न कदी सांभळी, न तेनो परिचय कर्यो के न तेनो अनुभव थयो. माटे तेनी प्राप्ति सुलभ नथी, दुर्लभ छे. ध्रुवस्वरूप नित्यानंद प्रभु जे भगवान आत्मा तेमां एकत्व थवुं ए सुलभ नथी, केम के अनंतकाळथी कर्युं नथी; माटे असुलभछे एटले के दुर्लभ छे एम हवे गाथामां कहे छे. अरे! माणसने न समजाय ए मनमांथी काढी नाखवुं जोईए, कारणके आत्मा-एकलो समजणनो पिंड छे. न समजाय एवी लायकातवाळो नथी, समजे एवी लायकातवाळो छे. माटे बुद्धि थोडी, अने अमे न समजी शकीए ए वात काढी नाखवी आमां बुद्धिनुं काम झाझुं नथी, परंतु यथार्थ रुचिनुं काम छे.

प्रवचन नंबर १०–१२, तारीख ८–१२–७प थी १०–१२–७प
*गाथार्थ उपरनुं प्रवचन *

सर्व लोकने कामभोगसंबंधी बंधनी कथा तो सांभळवामां आवी गई छे, परिचयमां आवी गई छे अने अनुभवमां पण आवी गई छे. जयसेन आचार्यदेवे काम, भोग अने बंध एम त्रणेनी कथा सांभळवामां आवी गई छे एम लीधुं छे. काम एटले ईच्छा अने भोग एटले ईच्छानुं भोगववुं ते; एवा कामभोगनी कथा एटले के एवा भाव संबंधी बंधनी कथा तो अनंतवार सांभळवामां आवी गई छे. अहा! अनंतवार सांभळी छे.