Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 76 of 4199

 

भाग-१ ] ६९

जयसेन आचार्यदेवे स्पर्शन्द्रिय अने रसना-ईन्द्रिय ए बेना विषयसेवनने ‘काम’ मां गण्या छे अने ध्राणेन्द्रिय, चक्षुरिंद्रिय अने कर्णेन्द्रिय ए त्रणना विषयोने भोगमां लीधा छे. (आ पांचेमां अंदरना भावनी वात छे). आवी कामभोगनी कथा जीवने वारंवार सांभळवामां अने परिचयमां आवी गई छे. रागनी -विकल्पनी जीवने आदत पडी गई छे, अर्थात् रागनो अनुभव, रागनुं वेदवुं अनंतवार कर्युं छे तेथी ते एने सुलभ छे.

अरेरे! मनुष्यपणुं एने अनंतवार मळ्‌युं छे, ए कांई पहेलुवहेलुं नथी. जीव तो अनादिअनंत छे ने? एटले अनंतकाळमां मनुष्यपणुं तो अनंतवार मळ्‌युं छे. एमां कोईकवार तो दया, दान, पूजा आदिना शुभरागनी अने कोईकवार हिंसा, जूठ, चोरी आदिना अशुभरागनी-एम पुण्य-पापना भावोनी एने आदत पडी गई छे. एटले कहे छे के रागभावनुं थवुं अने रागभावनुं भोगववुं ए तो अनंतवार श्रवणमां, परिचयमां अने अनुभवमां आवी चूकयुं छे, तेथी ते सुलभ छे.

परंतु, अरे! रागथी भिन्न भगवान आत्मानुं एकत्वपणुं एणे कदी सांभळ्‌युं नथी. एटले के रागथी भिन्न पडी निर्मळ पर्यायथी अंदर ज्ञायकनी द्रष्टि करवी एवुं कदीय सांभळ्‌युं नथी. आत्मा, सच्चिदानंद प्रभु रागथी भिन्न छे, ते रागना लक्षे जणाय नहीं. पण रागनी भिन्न पडेली निर्मळ दशामां शुद्ध आत्मा जणाय छे एवी वात कदीय सांभळी नथी, पछी परिचयमां अने अनुभवमां तो क्यांथी आवी होय!

भगवान कुंदकुंदाचार्यदेव नग्न दिगंबर भावलिंगी मुनि हता. आत्माना अतीन्द्रिय आनंदनुं प्रचुर स्वसंवेदन करता हता. ते महाविदेहमां सीमंधर भगवान पासे गया हता. सीमंधर एटले स्वरूपनी पूर्णतानी सीमा धरनारा ‘सीमंधर नाथ’. तेमनी पासे ते साक्षात् सदेहे गया हता. त्यां केवळी अने श्रुतकेवळीनी वाणी सांभळी, तेमणे आ शास्त्रो बनाव्यां छे. तेओ कहे छे के- भिन्न आत्मानुं एकपणुं एटले के परथी भिन्न रागथी भिन्न अने स्वभावथी अभिन्न एवुं एकपणुं एणे अनंतकाळमां कदीय सांभळ्‌युं नथी. मुनिराज पद्मनंदीए कह्युं छे ने के-

तत्प्रपि प्रीतिचितेन येन वार्ताऽपि हि श्रुता।
निश्चितं स
भवेद्भव्यो भाविनिर्वाणभाजनम्।।

अध्यात्मनी (रागथी भिन्न आत्मानी) वार्ता पण जे जीवे प्रसन्न चित्तथी - रुचि लावीने सांभळी छे ते भविष्यमां मोक्षनुं भाजन थाय छे. अहीं कहे छे के ध्रुवस्वरूप भगवान आत्मामां एकपणुं मानी एकाग्र थवुं ए एणे कदी सांभळ्‌युं नथी. रागनुं अने