परनुं लक्ष छोडी ध्रुवस्वभावमां लक्ष करवुं, शुद्धात्मामां एकपणारूप परिणमन करवुं एवी वात कदी सांभळी नथी तेथी परिचयमां अने अनुभवमां पण आवी नथी, तेथी ते एकनी प्राप्ति सुलभ नथी.
आवा एक ध्रुवस्वभावने द्रष्टिनो विषय न मानतां द्रव्य-पर्याय बेने द्रष्टिनो विषय माने छे ते भूल छे. (द्रष्टिनो विषय तो एक त्रिकाळ ध्रुव द्रव्य छे) नियमसारमां कह्युं छे के अंतःतत्त्वस्वरूप भगवान आत्मा अने बहिःतत्त्व एवी निर्मळ पर्याय ए बेनी मान्यता (श्रद्धान) ए व्यवहार समकित छे. बेने विषय करे ए राग छे. (तेथी जीवने राग ज उत्पन्न थाय) व्यवहार समकित ए रागरूप परिणाम छे. बेपणुं जेनो विषय छे ते राग छे अने एकपणुं (निज ध्रुवस्वभाव) ते सम्यक्दर्शननो विषय छे. अहीं कहे छे के आवी एकपणारूप परिणमननी वात अनंतकाळमां सांभळी ज नथी तेथी ते सुलभ नथी.
आ समस्त जीवलोकने, कामभोगसंबंधी कथा एकपणाथी विरुद्ध होवाथी अत्यंत विसंवादी छे तोपण, पूर्वे अनंतवार सांभळवामां आवी छे, अनंतवार परिचयमां आवी छे अने अनंतवार अनुभवमां पण आवी चूकी छे. अहीं समस्त जीवलोक लीधो छे. एमां एकेन्द्रियथी पंचेन्द्रिय सुधीनां बधां ज संसारी प्राणीओ आवी गयां. ए बधा जीवोए, काम कहेतां शुभाशुभ ईच्छानुं थवुं अने भोग कहेतां एनुं भोगववुं-ए संबंधी वात-जे एकपणाथी विरुद्ध छे अने आत्मानुं अत्यंत बूरुं करनारी छे तोपण अनंतवार सांभळी छे. अहीं सर्व जीवलोकमां पृथ्वी, जळ, अग्नि, वायु, वनस्पतिकाय एम सघळा एकेन्द्रिय जीवो पण एमां आवी गया.
बटाटानी एक राई जेटली कटकीमां निगोदना जीवोनां असंख्य औदारिक शरीर छे, एकेक शरीरमां अनंत निगोदना जीव छे. कहे छे के आ निगोदना जीवोए पण रागनी एकतानी वात (कामभोगनी वात) अनंत वार सांभळी छे. पण एमने तो कानेय नथी तो केम करी सांभळी छे? भाई, ए विकल्पने अनुभवे छे ने? एकेन्द्रियादि जीवो कर्णेन्द्रिय न होवा छतां अनंतकाळथी राग वेदे छे. राग साथे एकता अनुभवे छे तेथी बंधकथा सांभळी छे एम कहेवामां आवे छे. अनादिथी केटलाक जीवो एवाछे के जे निगोदमां पडया छे अने कदी बहार नीकळ्या नथी अने नीकळशे नहीं; एवा जीवोए पण रागना एकत्वनी वात सांभळी छे एटले के रागनो अनुभव एकत्वपणे करी रह्या छे अने तेनो ज परिचय छे.
अहा! आ रागना एकत्वनी बंधकथा विसंवादी छे, जीवनुं अत्यंत बूरुं करनारी छे, अकथ्य दुःखो आपनारी छे. राग विकल्प छे-पुण्यनो के पापनो. एने करवो