Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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भाग-१ ] ७१

अने भोगववो ए जीवने अत्यंत दुःखदायक छे, केमके एकपणाथी विरुद्ध छे. अरेरे! तो पण अनादिकाळथी जीवने तेनी ज वात अनंतवार सांभळवामां आवी छे. भगवान आत्मा ध्रुव चैतन्य अने आनंदस्वरूप छे, अने ईन्द्रियो तरफना वलणनो भाव ए कामभोगसंबंधी कथा छे, -मात्र दुःखनी कथा छे. ए पूर्वे अनंतवार सांभळवामां आवी छे, परिचयमां आवी छे अने अनुभवमां आवी गई छे. परंतु रागथी भिन्न भगवान ध्रुव त्रिकाळ छे एनुं लक्ष करीने वेदन थवुं जोईए ते वेदन एने कदी आव्युं नथी.

हवे विशेष कहे छे के केवो छे आ जीवलोक? ‘संसाररूपी चक्रना मध्यमां स्थित छे.’ जेम घंटीना बे पडनी वच्चे जे दाणो होय ते पीसाई जाय छे तेम आ समस्त जीवलोक अनादिथी संसाररूपी चक्र कहेतां पुण्य अने पाप एम बे भावरूप चक्रनी मध्यमां पीसाई रह्यो छे, दुःखी दुःखी थई रह्यो छे.

वळी तेने ‘निरंतरपणे द्रव्य, क्षेत्र, काळ, भव अने भावरूप अनंत भ्रमण प्राप्त थयुं छे.’ निरंतरपणे विकारमां स्थित होवाथी तेने पांच परावर्तनरूप भ्रमण अनादिथी छे. द्रव्यपरावर्तन कहेतां आ जगतमां जे अनंत अनंत पुद्गल परमाणुओ छे तेनो संबंध एने अनंतवार थई चूक्यो छे. आ शरीरनां रजकणो माटी (पुद्गल) छे, अने आ पैसा, धन, भवन ईत्यादि (कर्म नोकर्म) पण धूळ (पुद्गल) नां रजकणो छे, कहे छे के ए बधा पुद्गलो अनंतवार संबंधमां आवी गया छे. आ धनसंपत्ति, रूपाळुं शरीर, भवन ईत्यादिनो संबंध ए कांई नवुं नथी, अपूर्व नथी; एकमात्र शुद्ध आत्मानी अनुभूति ए ज अपूर्व छे. एवाय अनंत पुद्गलो छे जे जीवना संबंधमां आव्या नथी, छतां तेनुं लक्ष राग उपर छे तेथी अनंत परावर्तनमां बधाय पुद्गलथी संबंधनी लायकातवाळो जीव छे एम कह्युं छे.

वळी जीव निरंतरपणे अनंत क्षेत्रपरावर्तन करी चूक्यो छे. चौद ब्रह्मांडनुं क्षेत्र छे. तेमां दरेक प्रदेशमां अनंतवार जन्म्यो अने मर्यो छे. अनादिनी चीज छे ने? तेथी दरेक क्षेत्रे अनंत वार परिभ्रमण करी चूक्यो छे. भावपाहुडमां आवे छे के हजारो राणीओ छोडी, नग्न दिगंबर मुनिपणुं धारण कर्युं, अगियार अंग अने नव पूर्व भणी गयो, परंतु आनंदनो नाथ त्रिकाळी भगवान जे आत्मा तेनी द्रष्टि अने अनुभव करवां जोईए ते न कर्या. एवां द्रव्यलिंग धारण करी मुनिपणां लईने पण दरेक प्रदेशे अनंतवार जन्म- मरण करी चूक्यो छे. ज्यां सिद्ध भगवान बिराजे छे त्यां पण अनंतवार जन्म्यो, मर्यो छे; कोई क्षेत्र बाकी नथी. आम जीवे अनंत क्षेत्रपरावर्तन कर्यां छे.

वळी जीवे निरंतरपणे अनंत काळपरावर्तन कर्यां छे. काळचक्रना उत्सर्पिणी अने अवसर्पिणी एम बे भाग छे. ते दरेक दश कोडाकोडी सागरोपम छे. एक सागर असंख्य