Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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७२ [ समयसार प्रवचन

अबज वर्षोनो थाय छे. आ उत्सर्पिणी, अवसर्पिणीकाळना दरेकना प्रथम समयथी मांडी क्रमशः दरेक समयमां जीवे जन्म, मरण कर्यां छे. आम एक एक समये जन्म- मरण करतां अनंतवार जन्म्यो अने मर्यो छे. अहा! पण आत्मज्ञान अने आत्मदर्शन शुं छे तेनी वात कदी सांभळी नथी.

पैसा, संपत्ति वगेरे अनंतवार आव्या अने गया. आ मोटा शराफ, वकील अने डोकटरना धंधानी वात ए तो दुःखनी, पीडानी कथा छे. भाई! तें तारी वात सांभळी नथी. सर्वज्ञ परमेश्वर जेने आत्मा कहे छे तेनी वात कदी सांभळी नथी, ए परम आनंदनो नाथ छे; प्रभु! अतीन्द्रिय आनंदनो कंद आत्मा छे. जेम सकरकंद छे, एनी लाल छालनुं लक्ष छोडी दो तो ए एकली मीठाशनो पिंड छे. तेम आ भगवान आत्मा छे. पुण्य अने पाप ए लाल छाल जेवा छे. ए पुण्य-पाप विनानो आत्मा अतीन्द्रिय आनंदनो कंद छे. आ सांभळ्‌युं नथी कोई दिवस. जे सांभळवानुं छे ते न सांभळ्‌युं अने जे सांभळवानुं नथी ते सांभळ्‌युं. अहा! रूपिया क्यां एना छे, छतां रूपिया मारा छे ए मान्यता मूढनी छे. जड छे ते जीवना क्यांथी थाय? जड छे एने आपे कोण? राखे कोण? अने एनी रक्षा करे कोण? एनुं आववुं, जवुं ए आपमेळे एनाथी छे. ए जडनी रक्षा जडथी थाय छे. एमां आत्मा शुं करे? आवी वात कदीय सांभळी नहीं. तेथी प्रतिसमय जन्म-मरण सहित अनंत काळमां दुःखथी ज रखडी रह्यो छे.

वळी जीव निरंतरपणे अनंत भवपरावर्तन करी चूक्यो छे. मनुष्य, नारकी, देव अने तिर्यंचना भवो अनंतवार थई चूकया छे. राजा, महाराजा, शेठ अने करोडपतिना भव अनंतवार मळ्‌या छे, भाई! पण ए बधा भिखारानी जेम हमणां पण दुःखी छे, केमके एमने आत्माना आनंदनी खबर नथी. भगवान सर्वज्ञदेवे अनंत अनंत आनंद अने शांतिथी भरेलो भगवान आत्मा अनंत ज्ञानलक्ष्मीनो भंडार कह्यो छे. पण प्रभु! तने तारी लक्ष्मीनी खबर नथी अने बहार दोडादोडी करी दुःखी थई रह्यो छे. अहा! दुनिया मूर्ख छे, आत्माने समज्या विना मूर्ख छे. राग अने पुण्यनी क्रिया मारी एम माननारा सौ मूर्ख छे. अरे! अनंत अनंत अनाकुळ आनंदनी मूर्ति भगवान आत्मा छे एनी खबर न मळे, अने आ करो ने ते करो, एम पुण्य-पाप करवानी वात अनादिथी सांभळी सांभळी, अनंत भवनां कष्ट सह्यां छे, भाई! निगोदनां दुःखोनी कथा तो कोण कही शके? आ रागकथा, बंधकथा आत्मानुं अत्यंत बूरुं करनारी छे. वळी जीवने अनंत भावपरावर्तन थयां छे. शुभ अने अशुभ भावरूपी भावपरावर्तन अनंतवार थई गयां छे. दया, दान, व्रत, तप, पूजा, भक्ति आदि शुभभाव जीवे अनंतवार कर्या छे. एकेन्द्रियने पण शुभभाव होय छे. आम दया, अहिंसा आदिना