उपाय करवा ते ईन्द्रियोना विषयो तरफ झुकाव करे छे. तृष्णारूपी रोगनी पीडा सहन नहीं थवाथी ते आकळ-विकळ बनी स्पर्श, रस, गंध, वर्ण, अने शब्द एवा विषयो तरफ झूके छे, विषयोमां ज झंपलावे छे. परंतु अरेरे! आ विषयो तो मृगजळ जेवा छे.
जेम खारी जमीनमां सूर्यनां किरणो पडे तो ते पाणी जेवुं देखाय पाणी छे नहीं, मात्र देखाय छे. तेम पंचेन्द्रियना विषयो रम्य छे नहीं, मात्र देखाय छे. तेथी आ विषयो तो मृगजळ जेवा छे, देखावमात्र रम्य छे. आ जाणी लउं, आ खाई लउं, आ सांभळी लउं, आ भोगवी लउं, स्त्री, मकान ईत्यादि भोगवी लउं एम एकसाथे विषयोना समूहमां कूदी पडे छे. अहा! सित्तेर, सित्तेर वर्षना आयुष्य वीती गयां तेमां राग-द्वेष, पुण्य-पापना विकल्पोनी मजूरी ज एणे करी छे. करोडपति अने अबजोपति मोटा तृष्णारूपी रोगना दाहने शमाववा मृगजळ जेवा विषयोने सेवे छे, पण तेमां क्यांय सुख मळे एम नथी. मफतनो मिथ्या फांफां ज मारे छे.
वळी ते जीवो परस्पर आचार्यपणुं पण करे छे. एटले के बीजाने कही ते प्रमाणे अंगीकार करावे छे. आचार्यपणुं करे छे एटले एकबीजाने समजावे छे, शिखामण आपे छे के आपणे आम करवुं जोईए, तेम करवुं जोईए, छोकरांने भणाववां जोईए, मोटां करवा जोईए, परणाववां जोईए. व्यवहारमां तो बधुं करवुं जोईए ने? धर्म तो वृद्धावस्थामां करशुं हमणां तो आपणी फरज बजाववी जोईए, ईत्यादि परस्पर आचार्यपणुं करे छे. आवा जीवलोकने मिथ्यात्वरूपी भ्रमणा थई रही छे. जेम वंटोळियामां तणखलुं ऊडीने क्यां जई पडशे तेनी खबर नथी तेम आ संसारमां रखडता जीवो मरीने कागडे, कूतरे,.. . क्यां चाल्या जशे? अरे! चोराशीना अवतार करी-करीने जीवो दुःखी दुःखी थई रह्या छे, दुःखमां पीलाई रह्या छे.
अंदर आनंदनो नाथ पोते छलोछल सुखथी भरेलो छे तेनी सामे नजर कोई दिवस करी नहीं. आनंदना निधान प्रभु परमात्मानी सामे नजर न करतां ईच्छा अने ईच्छानुं भोगववुं एम कामभोगनी कथा अनंतवार सांभळी, परिचयमां लीधी अने अनुभवमां पण लीधी. तेथी आ कामभोग बंधनी कथा सौने सुलभ छे एटले के सौने सहेलाईथी प्राप्त थाय तेवी छे.
कामभोगनी कथा कहेतां विषयो संबंधी रागनी अने रागना भोगववानी कथा अनंतवार सांभळी छे. विषयभोग लेवो ते एकलो कामभोग नथी. जीव स्त्रीना शरीरने भोगवतो नथी. शरीर तो हाड, मांस, चामडां छे. ए तो अजीव छे, जड छे. एने ते ईष्ट गणीने राग करे छे. ते रागने अनुभवे छे, भोगवे छे, शरीरने नहीं. एम मेसुब, पाक वगेरे